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परिमाण-द्वार संखेज्जा पज्जता मणुयाऽपजत्तया सिया नस्थिा
उक्कोसेणं जइ भवे सेडीए असंखभागो उ ।। १५३।।
गाथार्थ- पर्याप्त मनुष्य परिमाण संख्यात ही होते हैं। पुन: अपर्याप्त मनुष्य तो कभी होते हैं कभी नहीं भी होते हैं, परन्तु जब होते हैं तब अधिकतम से एक श्रेणी के आकाश-प्रदेशों के असंख्यातवें भाग जितने होते हैं।
विवेचन-मनुष्यों के दो प्रकार हैं- गर्भज और संमूर्छिम। इनमें गर्भज तो सदैव होते हैं पर संमूर्छिम मनुष्य अन्तर्मुहूर्त की आयु वाले तथा अपर्याप्त ही होने के कारण कभी होते हैं और कभी नहीं भी होते हैं अतएव जब संमूर्छिम मनुष्य नहीं होते और केवल गर्भज पनुष्य ही होते है. तब वे परिमाण में संख्यात होते हैं। परन्तु संख्यात के भी संख्यात भेद हैं अतः किस संख्यात को मानना चाहिए इसके लिए बताया है कि छले वर्ग का पांचवें वर्ग के साथ गुणा करने पर जो संख्या आती है, वहीं संख्या गर्भज मनुष्यों की जाननी चाहिये। वर्ग का अर्थ क्या ?
(१) २ को २ से गुणा करने पर जो संख्या ४ बनी, यह प्रथम वर्ग हुआ। (२) ४ को ४ से गुणा करने पर १६ आये, वह दूसरा वर्ग हुआ। (३) १६ से १६ से गुणा करने पर २५६ आये, यह तीसरा वर्ग हुआ। (४) २५६ को २५६ से गुणा करने पर ६५५३६ आये, यह चौथा वर्ग हुआ। (५) ६५५३६ से ६५५३६ से गुणा करने पर ४२९४९६७२९६ आये यह पचम वर्ग हुआ। तथा (६) तथा पंचमवर्ग को पंचम वर्ग से गुणा करने पर जो छठा वर्ग हुआ उसकी राशि १८,४४,६७,४४,०७,३७,०९,५५,१६,१६ हुई।
इस छठे वर्ग को उपर्युक्त पंचम वर्ग से गुणित करने पर जो संख्या आयो यह राशि इस प्रकार है – ७९, २२, ८१, ६२, ५१. ४२, ६४, ३३, ७५. ९३, ५४, ३९, ५०, ३३६। इन अंकों की संख्या २९ है। इस प्रकार गर्भज मनुष्यों की संख्या २९ अंक संख्यात कही गयी है।
जब संमर्छिम मनुष्य पैदा होते हैं तो वे अधिक से अधिक असंख्यात होते हैं। इस प्रकार संख्यात गर्भज एवं असंख्यात सम्मूर्छिम मिलाने पर उनकी अधिकतम संख्या एक श्रेणी के आकाश-प्रदेशो के असंख्यातवें भाग जितनी होती है। (यह विषय कर्मग्रन्थ, भाग-४ गाथा-३७ तथा अनुयोगद्वारसूत्र ४२३-४ में भी वर्णित है।
उक्कोसेणं मणुपा सेटिं च हरंति रूवपक्खिना। अंगुलपत्मपतियादग्गमूलसंवारापलिभागा ।।१५४।।