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परिमाण द्वार
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है । । यह अनुमान प्रत्यक्षज्ञान की तरह प्रमाण हैं। ( विस्तार हेतु अनुयोगद्वार, सूत्र ४४० देखें)।
२. उपमान प्रमाण - दो प्रकार का है, १. साधम्योंपनीत, २. वैधयोंपनीत | सादृश्यता के आधार पर वस्तु को जानना यथा - गवय गाय जैसा होता है, उपमान प्रमाण है। (विस्तार हेतु अनुयोगद्वार सूत्र ४५८ देखें)।
ऊपर मतिज्ञान की चर्चा की गई हैं अब श्रुतज्ञान के विषय में बताते हैं
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प्रश्न- श्रुतज्ञान क्या है ?
उत्तर - केवली भाषित अर्थों का प्रतिपादन करने वाले आगमों को श्रुतज्ञान कहा गया है।
प्रश्न- भगवन्! आगम प्रमाण का स्वरूप क्या हैं?
उत्तर- आयुष्मन् ! आगम दो प्रकार का हैं, १. लौकिक, २. लोकोनर ।
१. लौकिक आगम-जिसे असर्वज्ञ व्यक्तियों ने अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचा हो, किन्तु लोक में आगमतुल्य मान्य हो, उसे लौकिक आगम कहते हैं, जैसे रामायण, महाभारत आदि । (अनुयोगद्वार सूत्र ४६७ )
२. लोकोत्तर आगम- - केवलज्ञान- केवलदर्शन के धारक, वर्तमान, अतीत और अनागत के ज्ञाता सर्वज्ञ के वचनों पर आधारित आचारांग आदि गणिस्टिक लोकोत्तर आगम हैं।
अन्य अपेक्षा से लोकोत्तर आगम तीन प्रकार का कहा गया हैं
१. सूत्रागम, २ अर्थागम और ३ तदुभय अथवा
१. आत्मागम, २. अनन्तरागम, ३ परम्परागम।
यह ज्ञान प्रमाण की चर्चा हुई अब अग्रिम गाथाओं में दर्शन, चारित्रादि की चर्चा करेंगे
चक्खुणमाई दंसण चरणं च सामइय- माई | नैगमसंगहववहारुज्जुसुए चैव सह नया ।। १४३ ।।
गाथार्थ - चक्षुदर्शन आदि दर्शन के सामायिक आदि चारित्र के तथा नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द ये नय के भेद हैं।
विवेचन - दर्शन चार प्रकार का है
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अवधिदर्शन तथा (४) केवल दर्शन गुण हैं।
(१) चक्षुदर्शन, (२) अचक्षुदर्शन, (३)
सभी प्रकार का दर्शन आत्मा का