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परिमाण द्वार
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प्रतिशलाका के एक-एक सर्षप को आगे के द्वीप, समुद्र में डालते जाना। उसके खाली होने पर एक सर्षप जो प्रतिशलाका के खाली होने का सूचक है उसको महाशलाका में डालना। अब अनवस्थित तथा शलाका पल्य भरे हैं। प्रतिशलाका खाली हैं और महाशलाका में एक सर्षप पड़ा है।
इसके बाद शलाका पल्य को खाली कर एक सर्व प्रतिशलाका में डालना । अनवस्थित को खाली कर शलाका में एक सर्षप डालना। इस प्रकार नया-नया अनवस्थित पल्य बना कर उसे सर्षप से भरकर तथा उक्त विधि के अनुसार उसे खालीकर एक-एक सर्षप द्वारा शलाका पत्य को भरना चाहिये। हर एक शलाका पल्य के खाली हो चुकने पर एक-एक सर्षप प्रतिशलाका में डालना चाहिये । प्रतिशलाका भर जाने के बाद अनवस्थित द्वारा शलाका भर लेना और अन्त में अनवस्थित भी भर देना चाहिये। इस प्रकार अब तक में तीन पल्य भर गये हैं। और चौथे में एक सर्वय हैं। फिर प्रतिशलाका को उक्त रीति से खाली करना और महाशलाका पल्य में एक सर्षप डालना चाहिये। अब तक पहले के दो पल्य पूर्ण हैं प्रतिशलाका खाली है और महाशलाका में दो सर्षप हैं इस तरह प्रतिशलाका से महाशलाका को भर देना चाहिये।
इस प्रकार पूर्व - पूर्व पल्य के खाली हो जाने के समय डाले गये एक-एक सर्वप से क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा पल्य जब भर जाय तब अनवस्थिन पल्य जो कि मूल स्थान से अन्तिम सर्षप वाले द्वीप या समुद्र तक लम्बा और चौड़ा बनाया जाता हैं उसको भी सर्षपों से भर देना चाहिये। इस क्रम से चारों पल्य सर्षपों से ठसाठस भरे जाते हैं। ( कर्मग्रन्थ४ / ७३-७७) जितने द्वीप समुद्रों में एक-एक सर्षप डालने से पहले तीन पल्य खाली हो गये हैं उन सब द्वीप- समुद्र की संख्या और परिपूर्ण चार पल्यों के सर्वपों की संख्या-- इन दोनों की संख्या मिलाने से जो संख्या हो उससे एक कम संख्या उत्कृष्ट संख्यात है। यह मत कर्मग्रन्थिकों का है। अनुयोगद्वार की मलधारी वृत्ति में संकेत हैं"" यदा तु चत्वारोऽपि परिपूर्णा भवन्ति तदोत्कृष्ट संख्येक रूपाधिकम् भवति" जब चारो पल्य भर जाते हैं उसमें बनी संख्यात संख्या में से एक कम करने पर उत्कृष्ट संख्यात होता है। (अनुयोगद्वार मलधारी वृत्ति पृष्ठ २३७ ) ।
इस प्रकार गाथा १३६ में बताये गये संख्यात को अब जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट रूप से बताते हैं-
(१) जधन्य संख्यात- दो की संख्या जघन्य संख्यात है। क्योंकि जिसमें भेद पार्थक्य प्रतीत हो उसे संख्या कहते हैं। भेद की प्रतीति कम से कम दो में होने से उसे जघन्य संख्या कहा है।