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________________ भाव परिमाण के प्रकार ४. भाव- परिमाण गुणनोगुणनिष्कनं गुणनिष्पन्नं तु वनमाईयं । नोगुणनिष्पन्नं पुण संखाणं नों य संखाणं ।। १३४ । । गाथार्थ- परिमाण के गुण निष्पन्न तथा नोगुण निष्पन्न ये दो प्रकार है। उसमे भी गुण निष्पन्न का वर्ग, गंध, रस आदि की दृष्टि से तथा नोगुण निष्पन्न का संख्या और नोसंख्या की दृष्टि से विवेचन किया जाता है। विवेचन - "भवन: भावः "होना, जिससे विद्यमान पदार्थों के भली भांति बोध हो वह भाव कहलाता हैं। यह भाव शब्द की व्युत्पत्ति है। भवनः अर्थात् वर्णादि परिणाम अथवा ज्ञानादि परिणामों का गुण परिमाण - भाव परिमाण के गुण निष्पन्न तथा नोगुण निष्पत्र ये दो भेद होते हैं। गुण परिमाण भी दो प्रकार के हैं— जीव गुण परिमाण और अजीब गुण परिमाण जीव गुण परिणमन तीन प्रकार का है, (१) ज्ञान, (२) दर्शन और (३) चारित्र | अजीव का गुण परिणमन ५ प्रकार का है- (१) वर्ण, (२) गंध, (३) रस, (४) स्पर्श और (५) संस्थान | ये गुण परिणमन के नाम निर्देशित किये। अब नोगुण परिणमन रूप सख्या परिणमन तथा नोसंख्या परिणमन की चर्चा अग्रिम गाथाओं में करेंगेसंखाणं पुण दुविहं सुयसंखाणं च गणणसंखाणं । अक्खरपयमाईचं कालियमुक्कालियं च सुयं ।। १३५ ।। - गाथार्थ - पुनः संख्या के भी दो प्रकार हैं— श्रुत संख्या तथा गणित संख्या । उसमें श्रुत संख्या भी दो प्रकार की हैं- कालिक और उत्कालिक । कालिक श्रुत संख्या के भी अक्षर, पद आदि अनेक भेद है। श्रुत के पुनः दो भेद है— कालिक . एवं उत्कालिक । कालिक में आचारांग आदि ग्रंथ और उत्कालिक में दशवैकालिक आवश्यक प्रज्ञापना जीवाभिगम आदि ग्रन्थ आते हैं। पुनः कालिक एवं उत्कालिक की श्रुत संख्या अनेक प्रकार की है यथा (१) पर्याय, (२) अक्षर, (३) संघात, (४) पद, (५) पाद, (६) गाथा, (७) श्लोक, (८) बेठ, (९) वेष्टक, (१०) अनुयोगद्वार, (११) उद्देशक, (१२) अध्ययन, (१३) श्रुतस्कन्ध, (१४) अंग आदि। इसप्रकार यहाँ श्रुत संख्या का वर्णन किया गया है।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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