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परिमाण द्वार
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यह कुंभ सूक्ष्म बालास स्वाड़ों से
बलाम खण्डों
को छुए हुए एवं नहीं हुए हुए सभी आकाश प्रदेशों में से प्रत्येक आकाश प्रदेश को प्रतिसमय निकालने में जितना काल लगे वह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है। इसमें भी असंख्यात उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी परिमाण काल है, किन्तु इसका काल व्यवहार क्षेत्र पत्योपम के काल से असंख्यात गुणा बड़ा है।
भगवन्- क्या उस पल्य में ऐसे भी आकाश-प्रदेश है जो बालाग्र खण्डों से अस्पर्शित हो?
हाँ आयुष्मन् ! उस पल्य के ऐसे भी आकाश-: से अस्पर्शित रह जाते है।
- प्रदेश है जो बालाय खण्डों
इस विषय में कोई दृष्टान्त है? हाँ जैसे कोई कोठा कुष्माण्ड के फलों से भरा हो उसमें बिजौरा फल डालें जाये तो वे समा जायेंगे। फिर बिल्ब डालेंगे तो वे भी समा जायेंगे। ऐसे ही क्रमशः आंवला, बेर, चना, मूंग, सरसों एवं गंगा की बालू डालने पर तो वह भी समा जायेगी। इस दृष्टान्त से उस पल्य के ऐसे आकाश प्रदेश भी है जो अस्पृष्ट रहते है। स्पृष्ट से भी अस्पृष्ट आकाश प्रदेश असंख्य गुणा अधिक है। (अनुयोगद्वार सूत्र
३९७ ) ।
दीवार में कील, जमीन में वृक्ष की जड़, मिट्टी में पानी आदि का प्रवेश पा जाना अवकाश या खाली प्रदेश का प्रतीक है। पल्योपम की तरह सागरोपम के भी तीन भेद हैं और इन तीनों के दो दो प्रकार हैं-
(१) उकार सागरोपम— दस कोटा कोटि बादर उद्धार पल्योपम का एक बादर उद्धार सागरोपम होता है।
दस कोडा कोडि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है।
ढाई सूक्ष्म उद्धार सागरोपम या २५ कोटा कोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में जितने समय होते हैं उतने ही लोक में द्वीप और समुद्र होते हैं।
(२) अन्या सागरोपम- दस कोटा कोटि बादर अद्धा पल्योपम का एक बादर अद्धा सागरोपम होता है।
दस कोडा कोडि सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपम होता है।
जीवों की कर्म स्थिति, कार्यस्थिति और भवस्थिति तथा आरों (काल चक्र) का परिमाण सूक्ष्म अद्धा पल्योपम और अद्धा सागरोपम से नापा जाता है।