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________________ ** जिनसहस्रनाम टीका ७७ ॐ चतुर्थोऽध्यायः (महाशोकध्वजादिशतम्) महाशोकध्वजोऽशोकः कः स्रष्टा पद्मविष्टरः । पद्मेश : पद्मसंभूतिः पद्मनाभिरनुत्तरः || १ || पद्मयोनिर्जगद्योनिरित्यः स्तुत्यः स्तुतीश्वरः । स्तवनाहों हृषीकेशो जितजेयः कृतक्रियः ॥ २ ॥ गणाधिपो गणज्येष्ठो गुण्यः पुण्यो गणाग्रणीः । गुणाकरो गुणाम्भोधिर्गुणज्ञो गणनायकः ॥ ३ ॥ अर्थ : महाशोकध्वज, अशोक, क, स्रष्टा, पद्मविष्टर पद्मेश, पद्मसम्भूति, पद्मनाभि, अनुत्तर, पद्मयोनि, जगद्योनि, इत्य, स्तुत्य, स्तुतीश्वर, स्तवनार्ह, हृषीकेश, जितजेय, कृतक्रिय, गणाधिप, गणज्येष्ठ, गुण्य, पुण्य, गणाग्रणी, गुणाकर, गुणाम्भोधि, गुणज्ञ, गणनायक ये जिनेन्द्र के नाम हैं। - T टीका महाशोकध्वजः = महांश्चासावशोकः महाशोकः महाशोको ध्वजं चिह्नं लाञ्छनं यस्य स महाशोकध्वजः - महान् अशोकवृक्ष जिसका ध्वज है, चिह्न है, लाञ्छन है ऐसे जिनेन्द्र को महाशोकध्वज कहते हैं । अशोकः = न शोकः शोचनं पुत्रकलत्रमित्रादीनां यस्य स अशोक: = जिनको पुत्र, कलत्र, स्त्री, मित्र आदिकों का कभी शोक नहीं हुआ ऐसे जिनेश्वर का अशोक नाम अन्वर्थक है। कः = कै, गैरे शब्दे कायति पुण्यं गायतीति कः, कायतेर्डतिडिमौडानुबंधेत्यस्वरादेर्लोपार्थः = कै गै रे इन धातुओं का शब्द करना, वर्णन करना ऐसा अर्थ होता है, भगवान के पुण्य का वर्णन कविजन करते हैं, अतः वे कनाम धारक हैं। वा सबको सुख देने वाले होने से भी 'क' कहलाते हैं। स्रष्टा = सृजति करोति निद्यमानः पापिष्ठैर्नरक तिर्यग्गतौ उत्पादयति, मध्यस्थैर्न स्तूयते न निन्द्यते तेषां मानवगतिं करोति । यैः स्तूयते पूज्यते आराध्यते तान् स्वर्गं नयति, यै: ध्यायते तान् मुक्तान् करोति । सृजति करोति प्रणयति घटयति |
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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