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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ५९ * वपुरित्यभिधानात् उ; शिवे मंदिरे मुक्तावित्यपि को ब्रह्मा आत्मा प्रकाशांके कोषात्' = जिनका अथवा जिनसे शोक नष्ट हुआ है वे जिनेन्द्र त्रिशोक हैं। अथवा विशिष्ट शं सुखं विशिष्ट शं सुख युक्त है, 'क' आत्मा जिनका ऐसे जिनेश्वर विशोक हैं। अथवा जिनसे भव्यों का आत्मा शोक रहित होता है, और मुक्तिसुखयुक्त होता है वे जिन विशोक हैं। वा अनन्त सौख्य, मुक्ति स्थान स्थायी है 'क' आत्मा जिसकी अतः विशोक है। अथवा 'वि' विशिष्ट 'श' सुख रूप वा शरण रूप शरीर से 'उ' शिव मन्दिर में 'क' आत्मा जिनकी वह विशोक कहलाते हैं। जिनकी आत्मा विशिष्ट सुख रूप शरीर युक्त मुक्तावस्था में विराजमान है। विजरः = विगता जरा यस्य स विजर: अथवा विशिष्टो जरो वृद्धो योऽसौ विजरः पुराणपुरुषः इत्यर्थः = जिनेश्वर जरा रहित होते हैं अतः वे विजर हैं। अथवा जो विशिष्ट वृद्ध हैं ऐसे जिन विजर हैं। अत्यन्त प्राचीन होने से उन्हें वृद्धपना प्राप्त नहीं होने पर भी वे विजर पुराण पुरुष हैं। अजरन् = अतिशयेन वृद्धः अजरन् अथवा न जरित्र्यतीति अजरन् 'शंतृणानौ निपातवत् क्रियायामिति शतृ प्रत्ययः' भूमिस्थोपि परमानन्द क्रीडनत्वादेवेत्यर्थः - अतिशय वृद्ध, अतिशय प्राचीन होने से जो जिनेश्वर अजरन् कहे जाते हैं, अथवा 'न अरिष्यति इति अजरन्' जो कभी जीर्ण नहीं होंगे ऐसे प्रभु अजर कहे जाते हैं क्योंकि वे परमानंद में सदा क्रीड़ा करते हैं।' अथवा एक संधि करने से 'जरन्' शब्द भी है जिसका अर्थ है अत्यन्त । विरागः = विशिष्टो रागो यस्य स विराग : अथवा विगतो रागो यस्य स विरागः । विशिष्ट राग जिसके हो वह विराग है अथवा जिसका राग नष्ट हो गया है वह विराग है। वि: विशिष्ट रूप से 'र' देते हैं 'आ' आत्मीय 'ग' ज्ञान जो वह विराग है अर्थात् जिनकी वाणी से भव्यों को विशिष्ट आत्मीय ज्ञान प्राप्त होता है- वे विराग कहलाते हैं। विरतः = विनष्टं रतं भवसुखं यस्य यस्माद् वा स विरत: = नष्ट हुआ है भवसुख जिनका ऐसे जिनेश्वर विराग होते हैं । 'वि नष्ट हुआ है 'रत' संसारसुख जिसका वा जिससे, वे विरत कहलाते हैं। वा हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह रूप पाँच पापों से विरक्त होने से विरत हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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