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________________ *८. तब आपने चिराभिलषित कार्य हाथ में लिया और पुराणों की रचना प्रारम्भ की। आपके ज्ञानकोष में न शब्दों की कमी थी, न अर्थों की अतः आप किसी भी वस्तु का वर्णन विस्तार से करने में सिद्धहस्त थे। आदिपुराण का स्वाध्याय करने वाले पाठक जिनसेन स्वामी की इस विशेषता का पद-पद पर अनुभव करते हैं। आदिपुराण - आपकी परवर्ती रचना है। प्रारम्भ से लेकर ४२ पर्व पूर्ण तथा ४३वें पर्व के ३ श्लोक आपकी स्वर्ण लेखनी से लिखे जा सके, असमय में आपकी आयु समाप्त हो गयी और आपका कार्य अधूरा रह गया । वीरसेन की सिद्धान्त ग्रन्थ की टीका समाप्त होते ही यदि महापुराण की रचना शुरू हो गयी हो तो उस समय श्री जिनसेन स्वामी की अवस्था ८० वर्ष से ऊपर हो चुकी होगी अत: रचना बहुत थोड़ी-थोड़ी होती रही। लगभग दस हजार श्लोकों की रचना में उन्हें कम-से-कम १० वर्ष अवश्य लग गये होंगे। इस हिसाब से शक संवत् ७७० तक अथवा बहुत जल्दी हुआ हो तो ७६५ तक जिनसेन स्वामी का अस्तित्व मानने में आपत्ति नहीं दिखती। इस प्रकार जिनसेन स्वामी ९०-९५ वर्ष तक इस संसार के सम्भ्रान्त पुरुषों का कल्याण करते रहे, यह अनुमान किया जा सकता है। जिनसेन स्वामी वीरसेन स्वामी के शिष्य थे। उनके विषय में गुणभद्राचार्य ने उत्तरपुराण की प्रशस्ति में लिखा है कि जिस प्रकार हिमालय से गंगा का प्रवाह, सर्वज्ञ के मुख से सर्वशास्त्र रूप दिव्यध्वनि का उद्गम और उदयाचल के तट से देदीप्यमान सूर्य का उदय होता है, उसी प्रकार वीरसेन स्वामी से जिनसेन का उदय हुआ, जिनके द्वारा प्रणीत निम्नलिखित ग्रन्थों का पता चला १. पार्वाभ्युदय, २. वर्द्धमान चरित्र, ३. जयधवला टीका आदिपुराण - यह आदिपुराण का चरित कवि परमेश्वर के द्वारा कही हुई गद्य कथा के आधार से बनाया गया है। इसमें समस्त छन्दों एवं अलंकारों के लक्षण हैं। इसमें सूक्ष्म अर्थ और गूढ़ पर्दो की रचना है। यह सुभाषितों का भण्डार है। इस ग्रन्ध के २५वें पर्व में जिनसेन स्वामी ने भगवान की १००८ नामों से स्तुति की है। जिसका अर्थ अत्यन्त हृदयग्राही और समस्त शास्त्रों के उत्कृष्ट पदार्थों का ज्ञान कराने वाला है। सहस्रनाम - यह भक्ति की चरमोत्कृष्ट रचना है। एक-एक शब्द को सार्थक करते हुए प्रभु की भक्ति एक-एक नाम में समाहित हुई है।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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