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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ५० * सुवाक् = सुष्ठु सप्तभंगी सहिता वाक् भाषा यस्य स सुवाक अथवा सुवक्तीति सुवाक = सप्तभंगी सुवाक् नाम से युक्त हैं। आपकी वाणी मनोरम होने से आप सुवाक् हैं। सूरिः = सूते बुद्धिं सुरिः भू सु आदिभ्यः किं । तथा चोक्तमिन्द्रनन्दिनापंचाचाररतो नित्यं मूलाचारविदग्रणी:। चतुर्विधस्य संघस्य य: स आचार्य इष्यते ।। सूते बुद्धि सूरिः । जीवादि पदार्थों को जानने वाली बुद्धि को उत्पन्न करने वाले जिनपति का सूरि नाम है। इन्द्रनन्दि आचार्य, सूरि का लक्षण ऐसा कहते हैं। जो ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार ऐसे पाँच आचारों में तत्पर हैं, यतियों के जितने मुख्य आचार है उनको वे जानते हैं, मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका ऐसे चतुर्विध संघ के लो. अग्रणी हैं. उनको आचार्य कहते .. हैं, सूरि कहते हैं। सब विद्याओं को प्राप्त होने से आप सूरि हैं। बहुश्रुतः= बहु प्रचुर श्रुतं कोटीशतं द्वादश चैव कोट्यो, लक्षाण्यशीतित्यथिकानि चैव । पंचाशदष्टौ च सहस्र संख्यमेतच्छुतं पंचपदं नमामि॥ यस्य स बहुश्रुतः तथाचोक्त हलायुधेप्राज्यं भूरि प्रभूतं च प्रचुरं बहुलं बहुः । पुरज पुष्कलं पुष्टमदभ्रमभिधीयते ।। एकसौ बारह करोड़ तैरासी लाख अठ्ठावन हजार पाँच पद हैं। ऐसे श्रुतको मैं नमस्कार करता हूँ। ___प्राज्य, भूरि, प्रभूत, प्रचुर, बहुल, बहु, पुरज, पुष्कल, पुष्ट, अदभ्र इनको बहु कहा है हलायुध कोश में । बहुश्रुत के ज्ञाता होने से बहुश्रुत कहा है। अथवा बहुत शास्त्रों के ज्ञाता होने से आपको बहुश्रुत कहते हैं। विश्रुतः = विशिष्टं श्रुतं श्रवणमाकर्णनं यस्य स इन्द्रनरेन्द्रधरणेन्द्रादीनां सुविश्रुतः जगत्प्रसिद्धः इत्यर्थः - विशिष्ट प्रख्याति प्रभु की है। इन्द्र, नरेन्द्र, धरणेन्द्रादिकों में जो जगत्प्रसिद्ध हुए हैं ऐसे जिनेश का विश्रुत नाम है। अथवा
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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