SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १९ टीका - प्रशान्तारि: = प्रशान्ता उपशमं गता अरयः कर्मशत्रवो यस्येति प्रशान्तारिः = जिनके कर्मशत्रु उपशम को प्राप्त हुए हैं, वे जिनराज प्रशान्तारि कहलाते हैं। . अनन्तात्मा = अनन्तेन केवलज्ञानेनोपलक्षितः आत्मा यस्येति स अनन्तात्मा। अथवा अनन्तो विनाशरहित आत्मा यस्येति स अनन्तात्मा = अनन्तरूप केवलज्ञान से प्रभु युक्त हैं अत: वे अनन्तात्मा हैं, अथवा अनन्त अर्थात् विनाश रहित आत्मा जिनका है वे जिनराज अनन्तात्मा हैं। ___ योगी = योग: चेतो निरोधनं विद्यते यस्य स योगी - चित्त को एकाग्र करना योग है। वह जिनको प्राप्त हुआ है ऐसे जिनराज को योगी कहना चाहिए। तत्त्वे पुमान् मनःपुंसि मनस्यक्षकदंबकम् । यस्य युक्तं स योगी स्यान्न परेच्छादुरीहितः।। तत्त्व में पुमान् आत्मा, आत्मा में मन, मन में स्पर्शनादिक पाँच इन्द्रियाँ जिसकती हो जाती हैं, उसे सोना चाहिए तो दूसरी वस्तुओं के चाहरूपी दुष्ट संकल्प से युक्त है, वह योगी नहीं है। योगीश्वरार्चितः = यम-नियमासन-प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणाध्यानसमाधिलक्षणा अष्टौ योगा विद्यन्ते येषां ते योगिनः। योगिनां मुनीनां ईश्वरा: गणधर-देवादयस्तैरर्चितः पूजितः स योगीश्वरार्चितः । = यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि स्वरूपी आठ योग जिनके होते हैं, वे योगी हैं, ऐसे योगियों के, मुनियों के जो ईश्वर गणधर देवादिक हैं, उनसे जिनप्रभु पूजे जाते हैं, उन्हें योगीश्वरार्चित कहते हैं। ब्रह्मवित् = ब्रह्माणमात्मानं वेत्तीति ब्रह्मवित् = आत्मा को ब्रह्म कहते हैं और आत्मा को जानने वाले जिनराज ब्रह्मवित् कहलाते हैं। ब्रह्मतत्त्वज्ञः = ब्रह्मणः आत्मनः ज्ञानस्य, दयायाः, कामविनिग्रहस्य तत्त्वं मर्मं जानातीति ब्रह्मतत्त्वज्ञः। “ज्ञानं ब्रह्म, दयाब्रह्म, ब्रह्म कामविनिग्रहः" इतिवचनात् = आत्मा का, ज्ञानका, दया का तथा इच्छाओं के निरोध का तत्त्व, स्वरूप या मर्म प्रभु जानते हैं, इसलिए वे ब्रह्मतत्त्वज्ञ कहे जाते हैं, क्योंकि ज्ञानको दया को और इच्छानिरोध को ब्रह्म कहते हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy