SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जिनसहस्रनाम टीका २१३ 1 टीका : त्वं भवान् पंचब्रह्मतत्त्वात्मा पंच ब्रह्मणां परमेष्ठिनां तत्त्वं स्वरूपं आत्मा यस्येति पंचब्रह्मतत्त्वात्मा । पंचकल्याणनायकः पंचकल्याणानां नायकः स्वामी पंचकल्याणनायकः । षड्भेदभावतत्त्वज्ञः षड्भेदभावाः षट्पदार्थाः तेषां तत्त्वं जानातीति षद्भन्ततः । त्वं भवान् सप्तनयसंग्रहः सप्तनया: नैगमादयस्तेषां सङ्ग्रहः स्वीकारो यस्य स सप्तनयसंग्रहः ॥ ५ ॥ हे परमेष्ठिन् ! आप पंचब्रह्म - पंचपरमेष्ठीस्वरूप हैं, अर्थात् अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधुस्वरूप हैं। तथा हे जिनराज, आप गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष ऐसे पंचकल्याणकों के नायक स्वामी हैं तथा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इनके स्वरूप के, गुणों के और पर्यायों के ज्ञाता हैं तथा नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ऐसे सात नयों को आपने स्वीकार किया है अर्थात् प्रमाण रूप केवलज्ञान - स्वरूप आप होने से, नय जो प्रमाण का एकदेश रूप है, आपका ही स्वरूप है ॥५ ॥ वह भी दिव्याष्टगुणमूर्त्तिस्त्वं नवकेवललब्धिकः । दशावतारनिर्द्धाय मां पाहि परमेश्वर ।। ६ ।। टीका : दिव्याष्टगुणमूर्तिः अष्टौ च ते गुणाः अष्टगुणाः दिव्याश्च ते अष्टगुणाः दिव्याष्टगुणाः सम्यक्त्वदर्शनज्ञानवीर्य सूक्ष्मावगाहनागुरुलध्वव्याबाधास्ते मूर्तिः शरीरं यस्य स दिव्याष्टगुणमूर्त्तिः । त्वं भवान् नवकेवललब्धिकः, दशावतारनिर्द्धार्यः दशावतारै: महाबलादि पुरुजिनपर्यंत दशावतारैः निर्द्धार्यः सम्पन्नः दशावतारनिर्द्धार्य: मां देवेन्द्रं जिनसेनाचार्यं पाहि रक्ष परमेश्वर । - हे ईश, आप दिव्य अविनाशी सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, वीर्य, सूक्ष्म, अवगाहन, अगुरुलघु और अव्याबाध आठ गुणरूप शरीर के धारक हैं। तथा आप नव केवललब्धियों से युक्त विराजमान हैं अर्थात् अनन्तज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र इन नव केवल लब्धियों से युक्त हैं तथा हे परमेश्वर, आप दश जन्मों से सम्पन्न होकर मुक्त हो गये हैं। आप मेरा अर्थात् श्री जिनसेनाचार्य का रक्षण करो। श्री ऋषभ जिनेश्वर
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy