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________________ * जिनसहस्रनाम टीका- १८३ * कनत्कांचनसन्निभः = तद्वत् सन्निभः := कनञ्च दीप्तं च कांचनं जाम्बूनदं कनत्कांचनं : सदृशः स कनत्कांचनसन्निभः = चमकते हुए सोने के समान है शोभा जिनकी ऐसे प्रभु । हिरण्यवर्णः = हिरण्यं रुक्मं तद्वद्वर्णो यस्येति हिरण्यवर्णः हिरण्य याने सोना इसके समान है वर्ण रंग जिसका उसे हिरण्यवर्ण कहते हैं। = सुवर्णाभ: = स्वर्ण गाङ्गेयं तद्वदाभा छविर्यस्येति स्वर्णाभः = सुवर्ण के समान प्रभु की देह छवि है । 7 " शातकुम्भनिभप्रभः = शतकुंभगिरी भवं शातकुंभं गात्रेयं तद्वद्विभा सदृशी प्रभा यस्येति शातकुंभनिभप्रभः । सदृक्, समान, सदृश:, सदृक्ष:, प्ररन्य:, प्रकाशः, प्रतिमः प्रकारः, तुल्यः समः सन्निभः इत्यभिन्नाः शब्दाः प्रयोगेषु वेष्टणीयाः = शतकुंभ नामक पर्वत पर उत्पन्न हुए स्वर्ण के समान प्रभु की प्रभा सुहावनी लगती है । सदृक्, समान, सदृश, सदृक्ष, प्ररन्य, प्रकाश, प्रतिम, प्रकार, तुल्य, सम, सन्निभ ये सब शब्द एकार्थ वाचक अर्थात् समान अर्थ के वाचक हैं। जैसे हेमसदृक्, स्वर्ण सदृश, हाटकतुल्य इत्यादि इनका सबका अर्थ सोने के समान ही होगा । अतः भगवान शुद्ध सुवर्ण के समान कान्ति वाले हैं। घुम्नाभः = " द्रव्यं वित्तं स्वापतेयं रिक्थमृच्छं धनं वसु । इत्यमरकोशे घुम्नमर्थ रैर्विभवानरिहिरण्यं द्रविणं ॥" द्रव्य, वित्त, स्वापतेय, रिक्थ, ऋच्छ, धन, वसु, घुम्न, ये धन या सुवर्ण के नाम हैं, उस सुवर्ण के समान कान्ति वाले हैं अतः घुम्नाभ हैं। जातरूपाभ:= जातरूपं कर्बुर: तद्वदाभा यस्येति स जातरूपाभः = सुवर्ण को जातरूप कहते हैं, उसकी तरह है आभा जिनकी, उन्हें जातरूपाभ कहते हैं । दीप्तजाम्बूनदधुतिः = दीप्तं जाम्बूनदं कार्त्तस्वरं दीप्तजाम्बूनदं तद्वद्युतिः कांतिर्यस्येति स दीप्तजाम्बूनदद्युतिः- तपे हुए जाम्बूनद याने सोने के समान है कांति जिसकी ऐसे प्रभु को दीप्त जाम्बूनदद्युति कहते हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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