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________________ जिनसहस्रनाम टीका - १७३ # विहितः पूर्वाणामुत्पादादीनां अंगानामाचारांगादीनां विस्तारो येन सः कृतपूर्वंगविस्तरः सर्वशास्त्रकर्त्ता इत्यर्थः = आदिनाथ भगवन्त ने पूर्वांग से लेकर अचलात्मक संख्या तक विस्तार से अंकगणना का लोगों को उपदेश दिया। उन संख्याओं के नाम पूर्वाज, पूर्व, पर्वांग, पर्व, नयुतांग, नयुत, कुमुदांग, कुमुद, पद्यान, पद्म, नलिनाज, नलिन, कमलांग, कमल, तुटिटांग, तुटिट, अटटांग, अटट, अममांग, अभय, हा हा अंग, हा विद्युत, विद्युल्लता, लताङ्ग, लता, महालताङ्ग, महालता, शीर्षप्रकंपित, हस्तप्रहेलिका, अचलात्मक । तिलोयपण्णत्ति प्रमाणनिर्देश - राजवार्तिक, हरिवंश पु. जम्बूद्वीपपण्णत्त ८४ लाख वर्ष ८४ लाख पूर्वांग ८४ लाख पूर्व ८४ लाख नियुतांग ८४ लाख नियुत ८४ लाख कुमुदांग ८४ लाख कुमुद ८४ लाख पद्मांग ८४ लाख पद्म ८४ लाख नलिनांग ८४ लाख नलिन ८४ लाख कमलांग ८४ लाख कमल ८४ लाख त्रुटितांग ८४ लाख त्रुटित ८४ लाख अटटांग महापुराण ८४ लाख वर्ष ८४ लाख पूर्वाग ८४ पूर्व ८४ लाख पर्वांग ८४ पर्व ८४ लाख नियुतांग ८४ नियुत ८४ लाख कुमुदांग ८४ कुमुद ८४ लाख पद्मग ८४ पद्म ८४ लाख नलिनांग ८४ नलिन ८४ लाख कमलांग ८४ कमल ८४ लाख त्रुटितांग ८४ त्रुटित ८४ लाख अटटांग १ पूर्वांग १ पूर्व १ पर्वांग १ पर्व १ नियुतांग १ नियुत १ कुमुदांग १ कुमुद १ पद्मांग १ पद्म १ नलिनांग १ नलिन १ कमलांग १ कमल १ त्रुटितांग १ त्रुटित १ अटटांग १ अटट
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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