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* जिनसहस्रनाम टीका - १६४ * अनंतधामर्षिः= अनन्तं च तद्धाम केवलज्ञानं अनंतधाम यस्येति अनंतधामा अनंततेजाः स चासौ ऋषिश्च त्रिकालदर्शी अनंतधामर्षिः = अनन्तधाम-केवलज्ञान जिनको प्राप्त हुआ एवं प्रभु अनन्त तेजस्वी त्रिकालदर्शी ऋषि हैं अतः अनन्तधामर्षि कहलाते हैं। ___मंगलं = मङ्गं सुखं लाति ददाति इति मंगलं, पापं गालयतीति मंगलं, अथवा मङ्गं सुपुण्यमिति यावत् तल्लाति आदत्ते इति वा मङ्गलम्। तथा-चोक्तम् मंगलशब्दोऽयमुद्दिष्ट: पुण्यार्थस्याभिधायकः, तल्लातीत्युच्यते सद्भिर्मंगलम्। मम् पापं दुरितमिति यावत् तद्गालयति विनाशयति विध्वंसयतीति मंगल। तथा चोक्तं -
मलं पापमिति प्रोक्तं, उपचारसमाश्रयात् । तद्धि गालयतीत्युक्तं मंगलं पण्डितैर्जनैः॥ तथा चोक्तं - त्रैलोक्येशनमस्कारो लक्षणं मङ्गलं मतम् । विशिष्टभूतशब्दानां शास्त्रादावथवा स्मृतः॥
भगवान मङ्ग' सुख को देते हैं अत: मंगल हैं । तथा 'म' पाप को गालयति' नष्ट करते हैं इसलिए मंगल हैं अथवा मंगं सुपुण्यको देते हैं, भक्तों को सुपुण्य प्रदान करते हैं अतः वे मंगल हैं। अथवा मं-दुरित-पाप उसका प्रभु विध्वंस करते हैं। अत: वे मंगल हैं, मग शब्द पुण्य के भाव को दिखाता है। उस पुण्य की प्राप्ति जिससे होती है, उसे मंगलार्थी सज्जनों ने मंगल कहा है। पाप को उपचार से मल कहते हैं। उसका गालन करना नाश करना मंगल है ऐसा पंडितों का कहना है। शास्त्र के प्रारंभ में त्रिलोक प्रभु जिनेन्द्र को नमस्कार करना मंगल है। अथवा शास्त्र के आरंभ समय में विशिष्ट शब्दों का स्मरण करना मंगल
मलहा = मलं पाएं हतवान् मलहा = मल को, पाप को प्रभु ने नष्ट किया है।
अनय = न अय: शुभाशुभं दैवं कर्म यस्येति अनयः स्वरेऽक्षरविपर्ययः