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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १४९ - अणुः = अण रण वण भण मण कण क्वणष्टनध्वनशब्दे। अण् अणति शब्दं करोतीति अणुः । पद्य सिव सिह निमनित्रपि पीदिकंदिकबंधिवहयणिभ्यश्च उ प्रत्ययः अणुरिति जातं कोऽर्थः, अणुरविभागी अतिसूक्ष्मः पुद्गलपरमाणुरुच्यते सोऽणुरिति सूक्ष्मत्वाद्विखं डोन भवति अल्पत्वात् । उक्तं च परमाणोः परं नाल्पं नभसो न परं महत् । इति ब्रुवन्किमद्राक्षीनेमौदीनाभिमानिनौ ।। इति वचनात् 'पुद्गलपरमाणुरतिसूक्ष्मो भवति। सः उपमाभूतो भगवान् तदणुसदृशत्वात् योगिनामप्यगम्यः अणुरुच्यते।' = अर्थ : अण, रण, वण, भण्, मण, कण् आदि धातु शब्द अर्थ में आते हैं। अण् धातु से 'उ' प्रत्यय करने पर अणु शब्द की उत्पत्ति होती है। अणति शब्द करता है, जिसकी दिव्यध्वनि होती है। अथवा 'अणु' अविभागी सूक्ष्म पुद्गल परमाणु को भी अणु कहते हैं जो अतिसूक्ष्म है, इन्द्रियज्ञान के अगोचर है, अल्प है। सो ही कहा है परमाणु से कोई अल्प नहीं है और आकाश से कोई बड़ा नहीं है। ये दीन, अभिमानी किसी के भी गोचर नहीं हैं, दृष्टिगोचर नहीं हैं । अणु से भगवान को उपमा दी है कि हे भगवन् ! आप अणु सदृश हैं, अतिसूक्ष्म हैं, योगिजन के भी अगम्य हैं, आपको योगी जन भी नहीं जान सकते अतः आप अणु अणीयान् = अणोरप्यतिसूक्ष्मत्वात् अतिशयेन अणु: सूक्ष्म; अणीयान्। 'प्रकृतष्टेर्थे गुणादिष्टेयन्सौ वा?' इति सूत्रेण इयन्स् प्रत्ययस्तद्धितं । पुद्गलपरमाणुस्तावत् सूक्ष्मो वर्तते सोऽपि अवधिमन:पर्ययज्ञानवतां गम्योस्ति परं भगवान् तेषां योगिनामपि अगम्यस्तेन सः अणीयानित्युच्यते = अणु से भी अतिसूक्ष्म होने से प्रभु अणीयान् हैं। पुद्गल परमाणु यद्यपि सूक्ष्म हैं तथापि अवधिज्ञानी तथा मनःपर्ययज्ञानियों को गम्य है, ज्ञेय है; परन्तु भगवान उन योगियों को भी अगम्य हैं। इसलिए भगवान को अणीयान् कहा है। अनणुः - न अणुः अनणुर्महानित्यर्थः । तथानेकार्थे = अणुब्रीह्यलयो:
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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