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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - १२९ * रेषणामलेपाराशीनामषिमाहर्मनीषिणः । मान्यत्वादात्मविद्यानां महद्भिः कीर्त्यते मुनिः॥ महांश्चासौ ऋषि: महर्षिः = प्रभु सम्पन्न ऋषि हैं। अथवा अनेक ऋद्धियों को भगवान प्राप्त हुए हैं, अत: वे महर्षि हैं। औषधिर्द्धि, विक्रियर्द्धि, अक्षीणमहानसऋद्धि, अक्षीणमहालयर्द्धि आदिक ऋद्धियाँ भगवान को प्राप्त हुई हैं- उक्तं च - क्लेशसमूह को रोकने से साधुजन विद्वानों के द्वारा ऋषि कहे जाते हैं और आत्मविद्या के लिए मान्य होने से महान् लोग यतियों को मुनि कहते हैं। महितोदयः महितः पूजित: उदयः तीर्थंकरनामकर्मणो विपाको यस्य स महितोदयः - पूजित हुआ है तीर्थकर नामकर्म का विपाक उदय जिनका ऐसे प्रभु महितोदय नाम से कहे जाते हैं। अर्थात् जगत् में पूज्य जन्म धारण करने से महितोदय कहलाते हैं। महाक्लेशाङ्कुशः शूरो महाभूतपतिर्गुरुः । महापराक्रमोऽनंतो महाक्रोधरिपुर्वशी ॥५॥ अर्थ = महाक्लेशाङ्कुशः, शूर, महाभूतपति, गुरु, महापराक्रम, अनंत, महाक्रोधरिपु, वशी ये आठ प्रभु के सार्थक नाम हैं जो इस प्रकार हैं टीका - महाक्लेशाङ्कुशः = महान् तपः संयम परीषह सहनादिलक्षणो योऽसौ क्लेशः कृच्छ्रेस एवांकुश: सृणिर्मत्तमनोगजेन्द्रोन्मार्गनिषेधकारकत्वात् महाक्लेशाङ्कुशः = महान् तप, संयम, क्षुधादि परीषह सहन-विजय करना आदिक क्लेशरूपी अंकुश से प्रभु युक्त हैं, अर्थात् मत्तमनरूप गजेन्द्र को उन्मार्ग से परावर्त करने के लिए भगवान ने संयम, तप आदिक अंकुश धारण कर मनरूप गज को वश किया है। वा महान् कष्टों को दूर करने के लिए अंकुश के समान होने से 'महाक्लेशांकुश' हैं।। शूरः = 'शूर वीर विक्रान्तो', शूरयते इति शूरः कर्मक्षयसमर्थ इत्यर्थः - प्रभु वीर हैं, विक्रान्त हैं, शूर हैं क्योंकि वे कर्मक्षय करने में समर्थ हैं । क्रोधादि शत्रुओं को दूर करने से, नाश करने से शूर हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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