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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ११० 2 प्रभावयोः । युक्ते शक्तौ च = प्रभु का वीर्य तेज महान् होने से महावीर्य हैंवीर्य शब्द के वीर्य, तेज, प्रभाव, युक्त, शक्ति आदि अनेक अर्थ हैं अतः महा तेज, बल, वीर्य, शक्ति के धारक होने से महावीर्य कहलाते हैं। अनन्त वीर्य के स्वामी होने से महावीर्य हैं। महासंपत् = महती संपत् संपदा समवसरणादिका यस्येति स महासंपत् = जिनकी समवसरणादि सम्पत्ति महत् याने महान् विशाल है, वह महासंपत्वान है। महाबलः = महबलं समस्त वस्तु परिच्छेदक लक्षणं केवलज्ञानं यस्येति स महाबलः, अथवा महबलं शरीरसामर्थ्य निर्भयत्वं च यस्येति महाबलः = महदूबल, संपूर्ण वस्तुओं को जानने वाला केवलज्ञान रूप बल जिनका है, अथवा जिनका शरीर सामर्थ्य तथा निर्भयत्व महान् है, ऐसे प्रभु महाबल हैं। __ महाशक्तिः = महती शक्तिरुत्साहो यस्येति स महाशक्तिः । तथानेकार्थे - "शक्तिरायुधभेदे स्यादुत्साहादि आदि शब्दात् प्रभुत्वं मंत्रश्च दौर्बले श्रियां" - जिनमें महान् शक्ति है, उत्साह है वे महाशक्ति सम्पन्न कहलाते हैं। अनेकार्थ कोश में शक्ति शब्द के शक्ति, आयुध, उत्साह, प्रभुत्व, मंत्र, दौर्बल्य और लक्ष्मी आदि अर्थ हैं अतः महाशक्ति, उत्साह, प्रभुत्व, लक्ष्मी आदि से युक्त होने से महाशक्ति कहे जाते हैं। महाज्योतिः = महत् ज्योति: केवललोचनं यस्येति स महाज्योतिः = केवलज्ञान रूपी महानेत्र को धारण करने वाले प्रभु महाज्योति नाम से शोभित होते हैं। महाभूति: = महती भूति: सम्पद्यस्येति स महाभूतिः । तथानेकार्थे - "भूतिस्तु भस्मनि। मांसपाकविशेषे च सम्पदुत्पादयोरपि" - जिसकी सम्पत्ति अतिशय विशाल है, वह महाभूति है- भूमि के सम्पदा, भस्म, उत्पाद आदि अनेक अर्थ हैं। ___ महाद्युतिः = महती द्युतिः शोभा यस्येति महाद्युतिः । अनेकार्थे - "द्युतिस्तु शोभादीधित्यो" - अतिशय विशाल शोभा कान्ति है जिसकी ऐसे
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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