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* जिनसहस्रनाम टीका - १०३ * युगाधारः = युगानां कृतयुगानामाधार: अधिकरणं स युगाधारः - भगवान कृतयुग के आधार अधिकरण होने से युगाधार हैं।
युगादिः = युगानां कृतयुगानामादिः प्रथमः स युगादिः - भगवान ने कृतयुग किया अतः वे उसके प्रथम आदि कारण हैं।
जगदादिजः = प्रथमपुरुष इत्यर्थः = जगत् के प्राणियों के आदिकाल में वे उत्पन्न हुए अत: वे प्रथम पुरुष जगदादिज हैं।
अतींद्रोऽतींद्रियो धीन्द्रो महेन्द्रोऽतींद्रियार्थदृक् । अनिद्रियोऽहमिन्द्रायॊ महन्द्रभहितो महान् ।।५।।
अर्थ : अतीन्द्र, अतीन्द्रिय, धीन्द्र, महेन्द्र, अतीन्द्रियार्थदृक्, अनिन्द्रिय, अहमिन्द्राज़, महेन्द्रमहित, महान, ये नौ नाम जिनदेव के हैं। ___ अतीन्द्रः = अति अतिशयेन इंद्र: स्वामी स अतीन्द्रः - अतिशय रूप आप हे प्रभु इन्द्रों के भी स्वामी हैं अतः अतीन्द्र हैं।
अतीन्द्रियः = अतिक्रांतानि इन्द्रियाणि येनेति अतीन्द्रियः, इन्द्रियज्ञानरहित इत्यर्थः - जिनदेव ने इन्द्रियों का अतिक्रमण किया है। अर्थात् इन्द्रियज्ञान से वे रहित हैं, केवलज्ञानी हैं, अतः अतीन्द्रिय हैं।
धीन्द्रः = स्मृत्यै चिंतायां ध्य, संध्या ध्या ध्यानं धी: सम्पदादित्वात् भावे क्यप् ध्याय्यो: संप्रसारणं ध्या स्थाने धीः ध्यायो: अनेनैव संप्रसारणं अनेनैव दीर्घत्वं प्रसि रेफ सो। धिया ध्यानेन केवलज्ञानेन इन्द्रः परमात्मा स धीन्द्रः = ध्यै धातु के स्मृति, चिंता, संध्या, स्थान, बुद्धि आदि अनेक अर्थ होते हैं, ध्यै धातु के 'य' का संप्रसारण 'इ' आदेश होकर धि बनता है, धी बुद्धि, उस धी के द्वारा इन्द्र हो, परमात्मा हो - वह केवलज्ञानी 'धीन्द्र' कहलाते हैं।
महेन्द्रः = महाश्चासाविन्द्रः महेन्द्रः = प्रभु सबसे बड़े इन्द्र हैं अतः वे महेन्द्र हैं।
अतींद्रियार्थदृक् = अतीन्द्रियार्थेन केवलज्ञानेन पश्यतीति अतींद्रियार्थदृक् = अतीन्द्रिय याने अमूर्तिक पदार्थ भी जिनके केवलज्ञान के द्वारा देखे गये या जाने गये हैं अत: वे अतीन्द्रियार्थदृक् हैं। या सूक्ष्म अन्तरित, दूरवर्ती पदार्थ भी जिनके द्वारा देखे जाते हैं।