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( अष्टम् - सर्ग )
अथासौ सदनं प्राप्य प्रस्तुताखिल मङ्गलम् । ननाम मातरं सापि रूशेदाप्राय मस्तकम् || १ |
कुमार ने शुभ मङ्गल पूर्वक अपने सदन में प्रवेश किया। उस समय नाना प्रकार सौभाग्यवती नारियों ने शुभ मांगलिक क्रियाएँ सम्पादित की, अर्थात् दूर्वाक्षत, पुष्प प्रादि क्षेपण किये । निरांजना उतारी प्रादि । तदनन्तर उस कुमार ने अपनी माँ के चरणों में विनय पूर्वक नम्रीभूत से हो प्रणाम किया । उसने भी ( माँ ने उसे रुदन करते हुए हृदय लगाया श्रीप उसका मस्तक चूमा ॥ १ ॥
समाश्वास्य ततस्तां स यथा ज्येष्ठ कृतानतिः । भद्रासने निविष्ठश्च भवन् भाजन माशिषाम् ।। २ ।।
कुमार ने यथायोग्य अपनी अधीर माँ को ग्राश्वासित किया तथा अन्य सभी ज्येष्ठ- बड़े पुरुष स्त्रियों को नमन किया । तदनन्तर भद्रासन पर श्रासीन हुआ। उस समय सभी गुरुजनों ने उसे विविध शुभाशीर्वाद प्रदान किये ॥ २ ॥
प्रक्षतानि दव त मस्तस्य जनीजनः ।
गीत वादित्र नृत्यादि कृतानि च सहस्रशः ॥ ३ ॥
सुभाषिनी नारी समूह ने उसके शिर पर प्रक्षत क्षेपण किये । हजारों प्रकार के गीत, नृत्य, वादित्रादि से महोत्सव किया ।। ३ ॥
श्व प्ररणस्य नारीणा मन्या सा मदियोः । पपात कम इत्यस्य कान्तानां च चतुष्टयम् || ४ ||
चारों पत्नियों ने भी सास स्वसुर के पादकमलों में नमस्कार किया पुन: अन्य सभी के योग्यतानुसार क्रमशः चरण स्पर्श किया || ४ ||
निविष्टञ्च समासा वनिता जन मध्यतः । स्वरूप संपदा सर्व भाविता हित विस्मयम् ॥ ५ ॥
यथायोग्य विनयोपचार कर वे चारों रमणियों से प्रावेष्टित हो यथायोग्य प्रासन पर मासीन हुयीं। उनका रूप लावण्य सबको आश्चर्य [ १५७