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सम्पादकीय
श्री चन्द्र प्रभु जिनेन्द्राय नमः परम् पूज्य समाधि सम्राट चारित्र चक्रवर्ती १०८ प्राचार्य श्री प्रादिसागर जी महाराज, समाधि सम्राट बहुभाषी तीथं भक्त शिरोमणि १०८ प्राचार्य श्री महावीर कीर्तिजी महाराज, चारित्र चूड़ामणि अध्यात्म बालयोगी कठोर तपस्वी १०८ प्राचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज, निमित्त ज्ञान शिरोमणि १०८ प्राचार्य श्री विमलसागर जी महाराज वात्सल्य रत्नाकर बाल ब्रह्मचारी १०८ गणधराचार्य श्री कुन्यसागर जी महाराज, धर्म प्रभाविका विदुषी रत्न, सम्यग्ज्ञान शिरोमरिण १०८ गरिएनो नायिका श्री विजयामति माताजी एवं लोक के समस्त तपस्वी साधुनों के पावन चरण कमलों में पुनः पुन: नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु करता हुया समिति द्वारा प्रकाशित इस सप्तम् ग्रन्थ "जिनदत्त चरित्र" के प्रकाशन के विषय में दो शब्द पाठकों से निवेदन करता हूँ।
इस शताब्दी के प्रथम चारित्र चक्रवर्ती १०८ प्राचार्य श्री प्रादिसागर जो महाराज "अंकलीकर" ने समाधि से पूर्व अपना आचार्य पद परम् पूज्य १०८ प्राचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज को प्रदान
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