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की गोद में जा मचली धीरे-धीरे खर्राटा भरने लगी, कुमार भी उसे सोई हुयी जानकर कथा बन्द कर उठा, विचारने लगा || ३६ ॥
चितितं च किमत्राहो मरणे कारणं नरणाम् । किमेषा पूतना प्रायः किं वा रक्षो निम्भितम् ॥ ४० ।।
क्या आश्चर्य है ? मनुष्यों के मरने का कारण क्या हो सकता है ? कोई पूतना-राक्षसी है अथवा अन्य कुछ है जो हो रक्षा का उपाय करना चाहिए ॥ ४० ।।
प्रत्यवास्तु यथा काम-मप्रमत्तो भवाम्यहम् । जागरूकानयो लोके तस्करमुष्यते ध्रुवम् ॥ ४१ ॥
अब मुझे यथा शीघ्न सावधान हो जाना चाहिए । प्रमाद त्याग कर सजग रहना होगा, क्योंकि जो जागरूक नहीं रहते उन्हें चोर-डांकू निश्चित रूप से ठग लेते हैं, उसका धन चुराते हैं ।। ४१ ।।
इत्यालोच्य समानीय मृतकं पृष्ठभूमित: । प्रारोच्य शयनीचे च प्रच्छाय घर बाससा ।। ४२ ॥
इस प्रकार विचार कर शीघ्र ही श्मशान से एक मृतक को पीठ | पर लाद कर ले प्राया, उसे अपने स्थान पर सुला दिया और सुन्दर ! वस्त्र उसे उड़ा दिया। यह शैया कन्या के बगल ही में थी।। ४२ ।।
प्रवीप छायया तस्थौ स्तंभान्तरिस विग्रहा। उद्घात पौस खगोडसो दत्त दृष्टि रितस्ततः ।। ४३ ।।
स्वयं दीपक की छाया में खम्भे की प्राड में छुप कर बैठ गया। उसने अपना चमकता खड्ग-तलवार निकाली, हाथ में ले इधर-उधर दृष्टि चलाने लगा ।। ४३ ।।
यावत्तावन्मुखे तस्या जिह वाञ्चित यमुगलम् । कम्पमानं ज्वसद वल्हि शिखाभ भय दायकम् ।। ४४ ।।
कुमार पूर्ण सावधान था, सतर्क था उसी समय राजकुमारी के मुख से भयंकर जिह्वा लपलपाता, अग्नि शिखा समान जाज्वल्यमान, भयावना, सबको कंपाता सा प्राकार निकला ।। ४४ ।।