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है ?" निकटस्थ जन-समूह ने राजा से कहा, हे नृपति यह मापकी राज कुमारी के सदन में जाने के लिए पाया है !" यह सुनते ही स्वयं राजा चिन्तातुर हो गया कहने लगा धिक्कर है मेरे जीवन को ।।२७-२८।।
सगुना पासता से कास सत्रियो म । अजनिष्ठ अगष्ट नररत्न विनाशिनी ॥ २६ ॥
यह परिताप करने लगा, प्राज मेरी पुत्री के बहाने इसे काल रात्रि पाई है, इस विश्व श्रेष्ठ नर रत्न का घात करने वाली विभावरी क्या यह कन्या जन्मी है॥ २६ ॥
प्रहो प्रकृति चापल्यमीदृशं मानुषायुषः । येनेषोऽपि महावीरो रात्रावेव विरक्ष्यति ॥ ३० ॥
हाय, हाय, कितना चपल है यह मायूष्मन् महावीर है तो भी अाज रात्रि में ही विनाश को प्राप्त हो जायेगा ॥ ३० ॥
महोश्लाघ्यं कथं राज्यं माहशां पापकर्मणाम् । ईहशामपराधेन बिना यन्त्र विनाशनम् ।। ३१ ।।
मेरे जैसे पापी का राज्य किस प्रकार प्रशंसनीय हो सकता है, हा हा, बिना अपराध के इस प्रकार का प्रारणी घात जहाँ हो भला वह राज्य किस प्रकार योग्य हो सकता है ? ।। ३१ ॥
रक्षरमानं महाभाम निज माहात्म्य योगतः । त्वाह शो हि महासत्वो दुर्लभो भवले यतः ।। ३२ ।।
वह सोचता है यह महा पुण्य शाली है, कहता है-हे महाभाग तुम स्वयं तुम्हारी रक्षा करो, अपने माहात्म्य से जीवन धारण करो, क्यों कि आपके समान महा धीर-वीर संसार में दुर्लभ है ।। ३२ ।।
इत्थं संभावितो राज्ञा दृष्टिगोचरमाप सः । कुमारी भवनं भव्यो भूतसंघात भौतिदम् ।। ३३ ॥
इस प्रकार संभावना कर भूपति कुमार के सामने आया और बोला, हे भज्य यह कुमारी का सदन भूतों का डेरा है । भय का स्थान है ॥३३।।