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संघस्थ सभी साधु साध्वियों को पढ़ाने-लिखाने का काम विशेष रूप से आप ही करती थीं। अभी भी अध्ययन अध्यापन का कार्य प्रापका उसी क्रम से चल रहा है । पाप ७ वर्षों तक तमिलनाडु में रहीं, यहाँ तमिल भाषा सीखकर आपने तमिल में ही उपदेश करना प्रारम्भ कर दिया था। ग्रन्थ लिपि सीखकर आपने प्राचीन ताड पत्रों के ग्रन्थ भी पढ़े। जो आपकी तत्वरुचि और तीक्ष्ण बुद्धि का परिचायक है । आपके वात्सल्य भाव प्रादि से प्रभावित होकर इन्द्रध्वज विधान के अवसर पर तमिलनाडु जन समाज ने आपको २६-१-८५ को 'जिन धर्म प्रभाविका पद दिया था।
चारित्र और ज्ञान दोनों का समन्वय आपके अन्दर अपने माप में बेजोड़ है। आपने अपने को तप की अग्नि में तपाकर इतना दिव्य कर लिया है कि प्रापका स्मरण भो अन्तःस्थल में व्याप्त विषय वासनामों को दुर्गन्ध का उन्मूलन कर हमें प्रात्मानुभव, प्रात्मचिन्तन और प्रात्ममन्थन के लिये उत्कण्ठित कर देता है।
___ आपकी लेखनी से निकले जो ग्रन्थ, साहित्य व कथाएँ हैं वे जनजन के हृदय में व्याप्त मिथ्यात्व और अचान का निवारण करने में पूर्ण समर्थ है साथ ही युक्ति युक्त और प्रागमानुकूल होने से प्रामाणिक भी है । उनमें कुछ कृतियों का नाम जो मुझे मालूम है वह इस प्रकार है(१) प्रात्मान्वेषण, (२) प्रात्मानुभव, (३) प्रात्म-चिन्तन (४) तजो मान करो ध्यान, (५) महीपाल चरित्र, (६) पुनर्मिलन, (७) तामिल तीर्थ दर्पण (८) कुन्दकुन्द शतक, (६) प्रथमानुयोग दीपिका, (१०) तत्व दर्शन, (११) अमृत वाणी (१२) श्री शीतलनाथ पूजा : विधान का पद्यानुवाद (१३) तत्व दर्शन ।
(१४) यह जिनदत्त चरित्र है । तमिलनाडू में ग्रन्थलिपि में लिखे । ताड़ पत्रों में आपने जिनदत चरित्र पढ़ा था उसका अनुवाद कर यह लिखा है।
आपकी प्रेरणा से तमिलनाडु में जहाँ जिन मन्दिर नहीं थे वहाँ नवीन जिनालय की स्थापना तथा प्राचीन जिन मन्दिरों का जीर्णोद्धार विशेष रूप से हुप्रा है, पांडीचेरी में पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा, सेलम व । मद्रास में वेदी प्रतिष्टा विशेष प्रभावना पूर्वक हुई। तमिलनाडू की सोई हुई जैन समाज को जागृत कर उनको धार्मिक कार्यों में सक्रिय कर आपने उन्हें नव जीवन प्रदान किया है।