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________________ विवाह-वग उसमे मिमी नारी की बात ( बसंतपुर ) जाकर कहो यो । तब सेठ ने ( सेठानी को ) बुला कर मंत्रणा की कि तुम्हारी लड़की को धरण करने के लिये वे ( मुझे ) भेजें ॥१०६॥ ४१ यह परिजनों को ला लिया और उन्हें बिठाकर 'उसने मंत्र पुष्टी । परिजनों ने कहा "हे विमल, ऐसा ( ही ) करो: विमलमती को जिनदत्त को दे दो ॥ ११०॥ सेक ने कहा, "हे कुटुम्बियों, तुमने अच्छा किया, तुम्हारे इस श्रेष्ठ वचन से हमारा हृदय विकसित हो रहा है । दुहिता रूपवती हो तो क्या किया जाय ? हो न हो उसे प्रत्र किसी सज्जन के घर दे दिया जाए" ।। १११।। T ११२-११३ } विवाहहु भाइ । चद्र सेठि तुव देण्ण साह, नीको लगनु श्री रूप पुणु पट्ट लिहा, कापरु पहिरि विष्णु घर जाइ ॥ विप्पह जाइ मेटियज साहू. सेठि जोवदेड हसतिनच 1 तुमह काजु हम किये जु बहुत धन सुलखन तुहाराज तु ॥ अर्थ: तब सेठ ( प्रस्ताव स्वीकार करते हुये ) दैन्य स्वभाव से कहने लगा "अच्छी लगन में आकर व्याह करनी।" फिर ( उसको) लड़की का रूप एक पट्ट पर लिखा कर और कपड़े पहन कर वह ब्राह्मगा ( बायस) घर गया ।।११२॥ (घर) जाकर ब्राह्मण ने सेठ से भेंट की। सेठ जोवदेव उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ । ब्राह्मण ने कहा "मैंने तुम्हारा कार्य बहुत ( प्रकार से ) किया । तुम्हारा सुलक्षणा पुत्र धन्य है ।। ११३ ॥ देण दण दैत्य |
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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