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________________ जिणवत्त चरित खूब सुशोभित थी, जहां एक स्वर्ण-निर्मित अण्ड दण्ड नाम की गढ़ी है तथा रत्नों से जले हुए महल दीप्त रहते हैं ।।८६11 __जहाँ घर घर में कूवा, बावड़ी एवं विहार बगीचा हैं जिनके प्राकार स्वर्ण के बने हैं । उत्तम लोग उसमें भरे रहते हैं और (वह ऐसी लगती है) मानों इन्द्र की पुरी कैलाश हो ॥३॥ बाइ – वापी-बावड़ी। [ ८५-८६ | वपिरिण जरण के हु देहि शुकः, नीमवंत माशाह तु सह । सपल सरड अंतेजह भारि, करहि राजु ने नयर ममारि ॥ बिमल सेठ विमला सेठिरणी, तहि कोरसि महि मंजल धरणी। विमप्तामती मंनि सा किसी, रूप बिसेषद जिह उरवसी ।। अर्थ :-बंदी जनों को जो [अपनी कोति से] उत्साह प्रदान करता है उस नगरी का [चम्पापुरी का| राजा गुणपाल है जो नीतिवान है । उसके अन्तःपुर की समस्त स्त्रियां रूपवती हैं ऐसा राजा नगर में राज्य करता है |॥८॥ ___ उसी नगर में विमल सेट और विमला मठानी है जिनको कीति मही मण्डल में घनी है । विमलामती नाम की उनके जो लड़की है वह मानों एप की विशेषता में उशी है । नीव - नीति । वस्तु बंध सौजि सुदरी गयण पुत्तार । मंतिय हंस गई कौलमा सरवर बइठी । खेलंतो जसा पड रूपरासि भद विठिय ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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