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________________ की रचना की गई है उस समय सामाजिक बन्धन कम ही था । जिनदत के विवाह अपनी ही जाति तक सीमित न रह कर अन्य जातियों में भी हुए थे । नगर में जुझारी होते थे एवं वेश्यायें होती थीं। कभी २ मद्र व्यक्ति भी अपने लड़कों को चतुर जीव के स्थानों में भेजा करते थे। जिनदत्त को कुछ दिनों तक ऐसे व्यक्तियों की छाया में रखा गया था। ऐसे ही लोगों का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है '— भरद्द ।। बार बार बेसा धरि जाहि अरु जूवा खेलत न अधाहि । खोरी करत न आलस करड, गांठ काटि मंगलइ जिन के दव्य गइम लिन्छु विठि सो जगु किय आखो मुदि । गंज कूडू मारि जिशु सही तिरिए सङ्घ सेठि बात सह कहीं || 1 समाज में जुआ खेलने की प्रथा थी और उसे समाज विरोधी नहीं समझा जाता था । उनके बड़े बड़े केन्द्र थे, जहां भोले भाले एवं नवसिखिये व्यक्ति फँस जाया करते थे। जिनदत्त मी एक बार में ११ करोड का दांव हार गया था | हारे हुए पैसो को दिये विना जुवादियों से मुक्ति मिलना संभव नहीं था । १ P विद्यisrai की प्रथा थी किन्तु कभी-कभी १४-१५ वर्ष होने के बाद उसे उपाध्याय के पास भेजते थे। शिक्षक को उपाध्याय कहते थे । वहाँ उसे लक्षण ग्रंम छंद शास्त्र, न्याय शास्त्र, व्याकरण, रामायण, महाभारत, भरत का नाटय शास्त्र, ज्योतिष, तंत्र एवं मंत्र शास्त्र आदि को शिक्षा देते थे । विद्याध्ययन के पश्चात् उसे शस्त्र चलाना भी सिखाते थे जिससे वह समय खाने पर अपनी आत्म रक्षा भी कर सके । समाज में जातियों एवं उप जातियों की संख्या पर्याप्त थी । कवि ने १. खेलत भई जिवन्त हारि, जूवारिन्तु जीति पच्चारि । भर रस्तु हम नाहीं सोडि हारिज दब्बू एगारह कोडि ।। १३० ।। श्रोतीस
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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