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किरणे फूटती थी । उसको भौहे कामदेव के धनुष के समान थी । उसकी चाल मस्ती को लिये हुये थी एवं उत्तकी एक झलक पाकर ही कुमुनि भो पिघल जाते थे।
सहिम समारिणय सहो भणिय, इम बंपइ मुतधारी ।
तासु रूब गुण वणिपयज, कइ रल्ह सबिचार ॥१०॥ मुदड़िय सहु कसु सोहइ पाउ, चालत हंसु देउ सस माउ । जाणू थाणु विहितहि घणे, तहि ऊपरि नेउर वाजणे ॥१॥ क.बई जा सइ र, छवि के कुयू पिंडरी । जंघ शुयल कदली ऊयरइ, तामु लक मूटिहि माइयइ।।२।। जणु हइ इति अणंगहु तरणी, महइ जु रंग रेह तहि घणी । नोले चिकुर स उज्जल काख, अबरु सुहाइ दीसहि काख ।।१३।। चंपाचणी सोहइ देह, गल कंदलह तिमि जसु रेह । पीराथरिण ओव्वरण मयसार, उर पोटी कडियल विस्थार ।।६।। हाथ सरिस सोहहि प्रांगुली, गह सु त दिपाह कुद की फली । मुव वल जंतु काटि जणु गणे, वणि सु रेख कविन्हु ते कहे ॥१५॥ इलोणी अरु माठी लोव, हरु सु पट्टिया सोइय गौष । काणि कुडल इकु सोचनु मणी, नाक थाणु जरणु सूवा तरणी ॥१६॥ मृह मंडलु जोवद्द ससि वयरगु, दोह वस्तु नावई मियणयरिण । अहि केहो वा चाले किरण, जारि डसागी हीरा मरिण छिरण।।१७।। मउह ममरण घरगु खंचिय धरी, दिपा लिलाट तिलक कंचुरी । सिरह मांग मोत्तिय भरि घलिइ, अवरु पीठ तलि विशी रूलई ||१८|| नाद विनोद कथा प्रागनी, गहिरी रयण बड़ी कंचुली । इकु तहि अस्थि देह की किरणी, अवर रल्ह पहिरइ आमरण ।। ६६ ।। जिम तणु वाहइ दिठि पसारि, काम वारण बस घालइ मारि तिह को रूप न वाइ जाई, देखि सरीर मयरगु अकुलाइ ॥१०॥ माल्हतो बिलासगइ चलइ, दरसन देखि कुमुणिवर उलइ 1
सत्ताईम