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२१२ भत्त = भरत = ६८,
भवियतइ = मध्य जानो - २५६, ममइ = चूमना - ३२६,
| भरियहु -- भव्य – २५८, आदि, भमत । भ्रमण करना - ", मन्त्र = मध्य - ५०, ५२०, भमिय -- फैलना - ४५,
मञ्च =भव्य – ५१३, भरंतु = - २२६,
भाइ = भाव - २८, आद. भव := डर - ३४६, ३५६,
भाउ = भाव - सादि, भयक - हुमा - ६०, ... ..पादि, भाग : भागका - ५३२, भयो । : हुआ १२३, ....... 'आदि, भान = भामती - ३५६, भरइ = भरा - २६६,
भाट = गाट - ३८०, ५०३, मरण = ..........'' - ४८१, भात = मात - ४२४. चन्तार . स्वामी -०४, | गाव - भाद्रपद - २६, मरलई = भर लिये - १८४, | भामर = भगनी - ५२०, भरत = मरत - ६४,
भामाद = - २३१, मन्हत · : भरता क्षेत्र - ३., भारती = सरस्वती - ११, गरह ......... - १९,
भालु - भाल -- ३४... भगति = प्रानि - .११.
भाव = विचार - ६६, ७५, भरि = मर - ६८, ....... आदि मावः =
-४४, मरिउ - भरा - ४०५,
भावगा = ग्धिालु = घाल भरकर - ४६८, भावती = अच्छी लगती है - १५., गरी - भरना - ८७, आदि, साल उ .: भला = ३५३,
भाष = वचन - २२२, भनि = अ - २०४,
भासहि = कहने लगे – १२६, भलो = सरर - ८५, आग, भासियह = कहा हुग्रा – ५८, मल = ............ ४४१,
भिक्बाहारी :: भिक्षाहारी - ४०१. भनी = सुन्दर - ३५५,
मिाया :: भिक्षा - ३३२, lrd ., जन्म - १६६, ३५.५, अादि ! मिटाइव -- भेंट कराना - १५.०, भवउ =
-५३४, भिडाइ = भिड़ जा- ३६८, 'मनकद . भवकप – ५२४, मिभनी - - ५८, मावरण = 'मवन - ४१, प्राधि मिमलु - बिनुन - ३४५, गावराणु = जिन-मन- १२२, अधि, । भीड
- १२१. भवमल :.
२०, भीतरि -- अन्दर - ३६, ४६८, आदि भदिय - मध्य – ६६१, ४३८, मनि – मुक्ति - १६६,