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________________ कवित्त = कविता - २१ कामिणी = कामिनी - २४४ कविन्ह - कवियोंने - १५ काय - शारीर - ३७७ काट = -४३॥ कारः .. सरपोक - २६३ कसिर : वृशि = १६९ कारजु - कामं -३६० कसु = -६१, १२६ कारण = --५३, १६२, ३२४,४२१ कह = क्या - १४४, २२४, ४६५ । कास = फल - २१०, ३३६, ४३०, कहा = कथा - १६, ७७, १११, - । । ४७६, ४७७, ४७७, ४७१, ४.७६ १२७, १५६, प्रादि | काला = काला मृत्युसामान -२२६, काउसरिंग = कायोत्सर्ग - ३६ काकर = कंकर - २४० कालकुट - काल कुष्ठ - ३८४ काख = ६३ कालि = काल - समय - काचुली - कंचुली - १३४, १३६ | काली - कल - २३३ ३१८ काछ : - ४३४ कालु =मृत्यु, - २२६, ३६६, - काज :- कार्य - २०७, २१६ ४३७, ४६०, ७८ काजिनिय निजकार्य - ५४६ वाल = काल - ३४५, ३४६ काजि - कार्य - १४४ काल्हि = कल - ३४३, ४०७, ४३५ काजु = कार्य - १७, ११३, २१४ - कासु = किसके - २२२, ३४७, ४५० ४६५, ५६७ पाहा = क्या - ३४१ कादि काटकर - ७०, ६५ काहि -- क्यों, क्या - २०१, ३५२, काठ - काष्ठ - ३२ ३६७, ३६३, ४१७, ४७१ काडि :: निकाल कर - २३५ काहु - किसीकी - ११५, १८१. . कारज - कष्ट - १५६ काहे : पयों -३१२, ३१५, ४०४, . काढ़ण हार = निकलने वाला - २३२ कारण - लल्जा, मर्यादा - ३९. ४६१ किज्जह = करना - ४६ कारिंग -. कान -६६ कित्तरेख - कोतिरेखा - २७३ काथु = कत्था - १७५ किरण : -५ कान = किण = १२६ कानडि = कपड़ी - २७. किण्णु = क्यों नहीं -२५२ कापडु = कपड़ा - ३२५ कित्ति - कोत्ति - ४५ कापर 4 कपड़े -११२ किन = कैमे - ६१५, ४.७६, ३७ कामकला - -६७६ किन = कसे - २१, २३६, ३४६,कामवाण = - १००, ११८ [ ३७२ ४७४, ४७५ ४६१
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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