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________________ जिरादत्त अरित उल्कापात के निमित से भीग ग्रहण को संसार को स्थिति को बढ़ाने वाला जामकर उसे बैराम्म हुआ तथा गिनदत्त को समस्त राज्य देकर (राजा) चंद्रशेखर भव्य तप करने लगा ।।५१२।। निछम्म / णिच्छम 2 निश्छद्रमन - निष्टकपट, किर L किल 1 चइ ८त्पन - त्याग करना माया रहित बहराइ - विराग । उक्क L (उल्क) -लोभ, सुसेच्छा वासना वडण 2 पतन । भोपभोग मुनि वंदना के लिये प्रस्थान । ५१३-५१४ । पाछह राजु कर जियतु, परिबारह सो हियउ महंतु । सहि बइठे जहि वाल गोपाल, श्राइन बात कहा वणवाल । देव समाहिगुप्त मुमि आई, सीलवंतु जसु शुद्ध सहाउ । फूलो फलो वएसई बेव, पर सुर भयर करहि जसु सेव ॥ अर्थः -- पीछे अकेला जिनदस राज करने लगा तथा अपने परिवार के सहृदय से महान हो गया । एक दिन जब वह बाल गोपाल के साथ बंटा हना था तो वनपाल ने आकर यह बात कही ।।५१३।। "हे देव ! एक समाधि गुप्त नामके मुनि आए हुए हैं जो शीलवंत है और जिमका शुद्ध स्वभाय हैं। उनके कारण वनस्पति पल फूल गई है तथा जिसकी सेवा मनुष्य, देव और विद्याधर करते हैं ।।५१४।। खबर / खचर - आकाशगामी, विद्याधर । [ ५१५-५१६ । जिणदत्त सुरिंगउ गुरहं जव णाज, सात पाय धरि परिणामु । पुणि पाणंद निसाण दिवाइ, सिख परिवारह वेवण जार ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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