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बिगत चरित
हृप्पा सेठ की कपा
४०६ -४०६
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झूठो भईय तिरिय
करहु, मेरे बोल न तुमि गरहु |
सद
पडे उघाउ कोड, सगे बुषा कहि भोलर होइ ॥ खिसुरिण बावणे होय अजाण, हृपा सेठिरिए वस पठाण | असी कोडि घर व अपार, घाठि कोव करs महारु ॥!
[
गनू
सबु
अर्थ :- (बोने ने कहा.) हे स्त्रियों । तुम झूठी होकर इस प्रकार दुःख ( शोक) कर रही हो । मेरी वाणी पर तुम विश्वास ( ? ) नहीं करती हो । उघाड़े पड़ जाने पर सभी हँसते हैं, सगा "कह कर मनुष्य भोला बनता है ।।४०८ ।।
(स्त्रियों ने कहा, ) " ओ हीन और प्रज्ञान बौने सुन। एक हृप्पा नाम का सेठ प्रतिष्ठान में बसता था। उसके घर में अस्सी करोड़ अपार द्रव्य था किन्तु वह स्वयं तो घटिया चावलों का आहार करता था " ||४०६ ॥
[ ४१० - ४११ ]
तीनि नारि तह खरी गुणंगु, रूप विज्जाहरि सुठु हृपा सेठि उठि वरिवजह गयउ
पठ
ब उतारि
तेन विट्टयउ, भूवित तिरी
धूत एकु धरि भापुरा हपा सेठि सो लीनिउ प्रानि त सोने
लेत पटोलो
सुवंगु |
श्राइ ॥
भयज ।
भरी ॥
अर्थ :- उसके तीन स्त्रियां अत्यधिक गुणवती थी रूप में वे विद्याधरियों जैसी अत्यधिक सुन्दर थी। जब हृपा सेठ उठकर व्यापार के लिये (विवेश) गया तो वहाँ एक मूर्त आया || ४१० ।।
उसके ( गई हुए) द्रव्य की (निकाल ) कर उसका भोग किया ( " )