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________________ बौने के रूप में अर्थ :-मंत्रीगण हृदय में संका करते रहे तथा राजा के मन में भी काका बैठ गयी । मार-बार मन को कोई टटोलने लगा । अत्यधिक मथने से काल क्रुष्ट हो जाता है ॥३८४।। ____सत्र श्री रघु (नाम के) मंधर्भ ने (बौने से) कहा, "राजा पूछ रहा है (अस.) तुम्हें सब कुछ कहना चाहिए; तुम्हें जिनेन्द्र की सौगन्ध है अपनी सब स्फुट (स्पष्ट) बात कहो' ।।३८५।। [ १८६-३७ । सुणि सुरिण देउ कई सतभाउ, कहियद सा वसंतपुर ठाउ । माता जीवंजस पिय स्खौर, पिता ओमधेष साहस थोर ।। एक पूतु हा तिट परि भयज, पुणु जिरत नाम मह व्यउ । हारिउ सामिय जूवा दग्द, कियउ विसंसरु वित्त परि गा॥ प्रय :- (बौना बोला) हे देव ! सुनिए, सुनिए । में सत्यमाव से कह रहा हूँ । “उस (मेरे स्थान) को वसंतपुर कहा जाता है। जिसका मैंने दूध पौया है ऐसी मेरी माता का नाम जरेवंजसा है तथा मेरे पिता साहमी जीवदेव है" ||३८६।। “उनके घर में मैं एक ही पुष हुआ, तदनन्तर उन्होंने मेरा जिनदत्त नाम रकबा । हे स्वामी ! मैं जुए में द्रष्य हार गया, इसलिए चित्त में गर्न धारण करके मैंने मिदेश (जाने) का निश्चय किया" ।।३६७ [ ३८-३६ ] प्रासा कार हर अरिणयउ मात्र, तो किमु छोडि दिसंतक माइ । धन को हियर म फादर देव, मह मिथु बाप म बोवा केव । दोठे अस नयर बहु घणे, हेटे चोप समुह रणे । वारह चरस विसंतर गए, न जाएज माय बापु कहा भए ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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