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जिणवस परित
पाहुने ! तुम यहाँ से जामो जानो। मैं तुम्हें मना करती हूँ। तुम्हें देख कर मेरे पिता मोहित हो गये हैं और एक मैं हूँ जो तुम्हें मारने जा रही हूँ।" रह कवि [ कहता है ] इस प्रकार कहते कहते काफी रात्रि बीत गयी और फिर [उसने कहा] "हे श्रेष्ठ वीर एक कघा कहो जिससे पहरा बैटे [जागते रात्रि का शेष प्रहर निकल जाये ॥२२४।।
नाराज छंद
[ २२४ । सा पहरा बैठिउ नारि बिठत वीर भुजगु । बोला कुद्धि सोषि विधि मोति ।। कहि कहा नीको मारणी, निब सुख्खु जिमु होइ । हा संपुरता तयR पक्ष सोइ ।।
अर्थ :-उस पहर में वह नारी बैठी रहीं और एक वीर [ भयंकर | सर्प उसको दिखाई पड़ा। अत:] यह अद्ध होकर और विद्धित होकर तथा अंगों को मोड़ती हुई बोली “तुम कोई भली भांति जानी हुई कथा कहो, जिससे निद्रा-सुख मिले । कथा-वार्ता से वह शीघ्र वहाँ मृत स्त्री [होकर | मो गयी ॥२२४॥
सूती जा महि मंतू सा महि जिरणवत्त करई । गयउ मसारिण भउज प्राणि खाट तलि भरह । अपुणु सोबई घण्णउ हर खडगु सभालि ।
प्रज्ज सु प्रावद पहिरव मायड़ मरह प्रयालि । अर्थ :-जब वह सो गई उस समय जिनदत्त ने यह किया कि श्मशान भूमि जाकर वहां से एक मृडी लाकर स्वाट के नीचे रख दिया और पाप स्वयं