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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ चारित्तक्खवणा
* उदेसिं घादिकम्माणं जेसिमोवट्टणा श्रत्थि ताणि देसघादीणि बंधदि, जेसिमोवणा णत्थि ताणि सव्वघादोणि बंधदि ।
४१ सुगमं ।
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* श्रवणासणा पुव्वं परूविदा' ।
$ ४२ यत्थमेदं पि सुत्तं, ओवट्टणा - सण्णाए पुव्वमेव सुविचारिदत्तदो । तदो केवलणाणदंसणावरणीयाणमोट्टणाविरहिदाणं सव्वधादिओ चेवाणुभागबंधो, सेसाणमोवट्टणपयडीणं खओवसमसत्तिसंजुत्ताणं देसघादिओ चेवाणुभागबंधो एदम्मि विसये पयट्टदि देसघादिकरणादो पाये तत्थ पयारंतरासंभवादो त्ति एसो एदस्स विहासागंथस्स गाहापच्छद्धपडिबद्धस्स समुदायत्थो । एवमेत्तिएण विहासागथेण पढमभासगाहाए अत्थविहासण समाणिय संपहि विदियभासगाहाए समुक्कित्तणं विहासणं च कुणमाणो उवरिमं पबंधमाढवेइ ।
* एत्ती बिदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा । ६ ४३ सुगमं ।
* इन घातिकमोंमें जिनकी अपवर्तना होती है उन्हें देशघाति रूपसे बाँधता है तथा जिनकी अपवर्तना नहीं होती है उन्हें सर्वघातिरूपसे बाँधता है ।
६ ४१ यह सूत्र सुगम है ।
* अपवर्तना संज्ञाका पहले कथन कर आये हैं ।
९ ४२ यह सूत्र भी गतार्थं है, क्योंकि अपवर्तना संज्ञाका पहले ही अच्छी तरह विचार कर आये हैं । इसलिये अपवर्तनासे रहित केवलज्ञानावरणीय और केवलदर्शनावरणीय सर्वघाति ही अनुभागबन्ध होता है, तथा क्षयोपशमशक्तिसे संयुक्त शेष अपवर्तना प्रकृतियोंका देशघाति ही अनुभागबन्ध इस स्थान में प्रवृत्त होता है, क्योंकि देशघातिकरणसे लेकर इस स्थानमें उन प्रकृतियोंका अन्य प्रकार सम्भव नहीं है । जिन कर्मोंके देशघातिस्पर्धक होते हैं उन कर्मोकी अपवर्तना संज्ञा है। इस प्रकार उक्त भाष्यगाथाके उत्तरार्धसे सम्बन्ध रखनेवाले इस विभाषाग्रन्थका यह समुच्चयरूप अर्थ है। इस प्रकार इतने विभाषाग्रन्थके द्वारा प्रथम भाष्यगाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त करके अब दूसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना और विभाषा करते हुए आगे के प्रबन्धको आरम्भ करते हैं
* यह दूसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना है ।
९ ४३ यह सूत्र सुगम है ।
पुव्वपरूविदा ता०