SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४३ शुद्धिपत्र ] पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ३३८ २१ असंख्यातासंख्यात भाग ३४० ३० निर्जरा ३४३ ३१ ६६८० ३४४ ७ वग्गणाभागहारमेत्तं ३४४ २२ २१/१०५ ३४७ १८ एक गुणहानि ३४८ १७ जानना चाहिए। ३४९ २६ एक गुणहानिस्थानान्तर के ३४९ ३० वर्गणाएँ निक्षिप्त ३५१ ३१ पुनः द्वितीय ३५४ ३१ भागहीन है, किन्तु ३५७ २२ उदय एक स्थानीय रूप से उनमें ३५८ ३० के असंख्यातवें ३९६ २ पृष्ठ १५९ ४०१ २८ पृष्ठ ३४३ शुद्ध असंख्याता संख्यातवें भाग संक्रमण १६८० वग्गणा भागहारमेतं १०५ एक प्रदेशगुणहानिजानना चाहिए । वह कैसेएक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के वर्गणा में निक्षिप्त पुनः पूर्वोक्त द्वितीय भागहीन नहीं है, किन्तु उदय में एक स्थानीय रूप से के स्पर्धकों के असंख्यातवें पृष्ठ १२९ पृष्ठ ३४२ जयधवला भाग १५ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध २ ३८ यथा समय यथा आगम ३ १४ संख्यातगुणा होता है। संख्यातगुणाहीन होता है। ३ ३१ सत्कर्म के काण्डक के ११ ३३ अतः ११ ३४ अनन्त कहे जाते हैं अन्तर कहे जाते हैं १५ २० अनन्त अन्तर १५ २४ अन्तिम अन्तर कृष्टि अन्तिम कृष्टि १७ २५ प्रथम कृष्टि का प्रथम संग्रह कृष्टि का २५ २५ गोपुच्छाओं स्पर्धकों २६ २४ कृष्टियों को निष्पादित कृष्टियों को द्वितीय समय में निष्पादित २७ ३३ पूर्व और अपूर्व कृष्टियों की अपेक्षा पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा ५६ २१ रहने है तक रहने तक ७४ २५ द्रव्य कुछ द्रव्य का कुछ ८० २१ प्रथम संग्रह प्रथम अथवा द्वितीय संग्रह ९७ २७ चढ़ा हुआ जीव चढ़े हुए जीव के
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy