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पच्छिमखंध-प्रत्थाहियार शब्दब्रह्मेति शाब्दैर्गणधरमुनिरित्येव राद्धान्तविद्भिः,
___ साक्षात्सर्वज्ञ एवेत्य वहितमतिभिः सूक्ष्मवस्तुप्रणीतौ । यो दृष्टो विश्वविद्यानिधिरिति जगति प्राप्तभट्टारकाख्यः,
स श्रीमान्वीरसेनो जयति परमतध्वान्तभित्तंत्रकारः ॥१॥ जे ते तिलोयमत्थयसिहामणी गुणमयूहविष्फुरिया । सिद्धा जयंति सव्वे लद्धसहावा विबुद्धसव्वत्था ॥ २ ॥ जेसिं णवप्पयारा केवललद्धिप्पहा परिप्फुरइ । भवियजणकमलबोहण दिवायरा ते जयंति अरहंता ।। ३ ॥ पद्धोरिय धम्मपहा णिद्धोयकलंक-धवलचारित्तधया। सद्धम्मधोरिया ते सुद्धिं मे देंतु मूरिवरसत्थवहा ॥ ४ ॥ अज्झप्पविज्जणिवणां समायझाणजोगसंजुत्ता। सज्जणकमलविबोहणसुज्जा पसियंतु मे उवज्झाया ।। ५ ।।
पश्चिमस्कन्ध अर्थाधिकार [ अब पश्चिमस्कन्ध नामका अधिकार प्रारम्भ होता है । ] जो वीरसेनस्वामी वैयाकरणोंकेद्वारा शब्दब्रह्म माने गये हैं, सिद्धान्तके ज्ञाताओंकेद्वारा जो गणधर मुनि माने गये हैं, अवहित मतिवालोंकेद्वारा सूक्ष्म वस्तुकी रचनामें जो साक्षात् सर्वज्ञ हो स्वीकार किये गये हैं, जो विश्व-विद्यानिधिके दृष्टा हैं तथा जिन्होंने लोकमें भट्टारक संज्ञाको प्राप्त किया है वे परमतरूपी अन्धकारको भेदनेवाले सिद्धान्तकार श्रीमान् वीरसेनस्वामी जयवन्त होवे ॥१॥
जो तीन लोकके मस्तकके शिखामणिके समान हैं, जो गुणरूपी किरणोंको विस्फुरित करनेवाले हैं, जिन्होंने आत्मस्वभावको प्राप्त कर लिया है और जो तीनों कालोंके समस्त पदार्थो के जानकार हैं वे सब सिद्ध जयवन्त रहें ।। २।।
जिनकी नौ प्रकारको केवल-लब्धियोंकी प्रभा स्फुरित हो रही है तथा जो भव्यजनरूपी कमलोंको विकसित करनेकेलिए दिवाकरके समान हैं वे अरहन्तपरमेष्ठी जयवन्त रहें ॥ ३ ॥
जिन्होंने धर्मपथकी धुराको अच्छी तरहसे धारण किया है, जो अन्तरंग और बहिरंग कलंकको धोकर उज्ज्वल चारित्ररूपी ध्वजा धारण करनेवाले हैं और जो सद्धर्मके धारण करनेवालोंमें अग्रणी हैं वे सूरिवररूपी सार्थवाह हमें शुद्धि प्रदान करें ॥ ४ ॥
जो अध्यात्मविद्यामें निपुण हैं, जो स्वाध्याय, ध्यान और योगसे संयुक्त हैं तथा जो सज्जनरूपी कमलोंको विकसित करने में सूर्यके समान हैं वे उपाध्यायपरमेष्ठी हमपर प्रसन्न हों ॥ ५ ॥