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________________ ११२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तक्खवणा ___६२६६ सुगमं । संपहि इत्थीवेदेण उवद्विदस्स खवगस्स णाणताणुगमणं कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाढवेइ * इत्थिवेदेण उवट्टिदस्स खवगस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो। २६७ सुगर्म । * तं जहा। $२६८ सुगमं । * जाव अंतरंण करेदि ताव गथि जागत्तं । $ २६९ कुदो ? अंतरकरणादो हेडिमाणं किरियाविसेसाणं दोसु वि खवगेसु णाणत्तेण विणा पवुत्तीए णिब्बाहमुवलंभादो। अंतरकरणे कदे पुण केत्तिओ वि मेदो अस्थि त्ति जाणावणट्ठमुत्तरसुतमाह * अंतरं करमाणो इत्थीवेदस्स पढमहिदि ठवेदि।। कुदो एवमिदि चे ? जस्स वेदस्स संजलणस्स वा उदएण सेढिमारुहदि तस्सेव पढमट्ठिदिमंतोमुहुत्तायामेसो ठवेदि, ण सेसाणमिदि णियमदंसणादो। संपहि एदिस्से इथिवेदपढमट्टिदीए पमाणविसेसावहारणद्वमुत्तरसुत्तारंभो। ६२६६ यह सूत्र सुगम है। अब स्त्रीवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपककी विभिन्नताका अनुगमन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए अपकके भेदको बतलावेंगे । 8 २६७ यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६२६८ यह सूत्र सुगम है। * जबतक अन्तर नहीं करता है तबतक भेद नहीं है। ६२६९ क्योंकि अन्तरकरण के पहले दोनों ही क्षपकोंमें भेदके बिना प्रकृति निर्बाध पायी जाती है। अन्तरकरण करनेपर तो कितना ही भेद पाया जाता है, इसका विशेष ज्ञान करानेकेलिये आगेका कथन करते हैं * अन्तर करनेवाला जीव स्त्रीवेदकी प्रथम स्थिति स्थापित करता है। शका--ऐसा किस कारणसे होता है ? समाधान—जिस वेद और संज्वलन कषायके उदयसे श्रेणिपर आरोहण करता है उसीकी प्रथम स्थितिको यह जोव अन्तमुहूर्तप्रमाण स्थापित करता है, शेष प्रकृतियोंकी नहीं, ऐसा नियम देखा जाता है। अब इस स्त्रीवेदकी प्रथम स्थितिके प्रमाण-विशेषका अवधारण करनेकेलिये उत्तर सूत्रको आरम्भ करते हैं-- १. ता० प्रती मेसा इति पाठः ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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