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गया। प्रथम भाग तक स्व० पं० महेन्द्रकुमार जी इनके सहयोगी थे और 'संघ के बौद्धिक स्तम्भ स्व० पं० कैलाश चन्द्रजी अन्त तक भूमिका, परामर्श तथा प्रकाशन मंत्री रूप से सहयोगी रहे हैं । तथापि इसकी पूर्णा की वेला में आप एकाकी हैं ।
अपने स्वतंत्र चिन्तन के कारण सिद्धान्त शास्त्रीजी को जीवन यात्रा में अनेक विषम घाटियों से गुजरना पड़ा है। इसमें उनकी साहसी पत्नी सौ० पुतली बाई उनकी परछांयी के समान रही हैं । संघके सम्पर्क में आने पर आपकी विधायक वृत्ति ने जोर पकड़ा। और सन्त गुरुवर गणेश वर्णी के नाम पर स्थापित ग्रन्थ-माला दानवीर सेठ भागचन्द्र जी डोगरगढ़ तथा उनकी पतिपरायणा धर्मपत्नी नर्मंदा बाईजी के प्रथम तथा प्रमुख सहयोग से 'गणेशवर्णी शोध संस्थान' रूप में विकसित हुआ है । यह संस्थान आर्ष ग्रन्थों के प्रकाशन के साथ श्रमण-विषयों में कार्यं करने वाले शोध स्नातकों का भी बौद्धिक तथा आर्थिक मार्गदर्शक है। तथा इस परिणत वय और क्षीण कायिक स्थिति में भी जिनवाणी हो सिद्धान्तशास्त्री जी की चिन्तन - लेखन - प्रवचनकी एकाकी धारा है ।
रतनलाल गंगवाल
अध्यक्ष भा० दि० जैन संघ