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aaraढी किट्टी अप्पा बहुअपरूवणा
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* एवमणंतराणंतरेण मायाए वि तिन्हं संगहकिट्टीणं किट्टीअंतराणि जहाकमेण अनंतगुणाए सेडीए नेदव्वाणि ।
४३. लोभस्स तिन्हं संगहकिट्टीणं भणिवविहाणमवहारियूण तेणेव कमेण मायाए वि तिन्हं संगह किट्टीण मणंतर किट्टीसु जहाकममणंतगुणाए सेढीए किट्टीगुणगाराणमप्पाबहुअ मेदं दव्वमिदि वृत्तं होइ ।
* एत्तो माणस्स पढमाए संगह किट्टीए पढमकिट्टी अंतरमणंतगुणं ।
४४. एत्थ वि पुव्वं व परत्याणगुणगारुल्लंघणेण मायाए तदियसंगह किट्टी चरिमंतरादो माणस्स पढमसंग हकिट्टीए पढपस्स किट्टीअंतरस्साणंतगुणत्तमुवइटुं दट्ठव्वं ।
* माणस्स वि तिडं संगहकिट्टीणमंतराणि जहाकमेण अनंतगुणाए सेढीए दव्वाणि ।
४५. माणस्स वि तिष्हं संगह किट्टीणं पुध पुध णिरंभणं काढूण पयदप्पाबहुअं णेदव्यमिदि
तं होइ ।
* एत्तो कोधस्स पढमसंग किटटीए पढमकिट्टी अंतरमणंतगुणं ।
६ ४६. सुगमं ।
* कोहस्स वि तिन्हं संगइकिट्टीणमंतराणि जहाकमेण जाव चरिमादो अंतरादो त अनंतगुणाए सेटीए दव्वाणि ।
इस प्रकार अनन्तर तवनन्तर क्रमसे मायाकी तीनों संग्रहकृष्टियोंके कृष्टि अन्तरोंको यथाक्रम अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले आना चाहिए ।
४३. लोभकी तीनों संग्रह कृष्टियों की कही गयी विधिसे अल्पबहुत्व का अवधारण करके उसी क्रमसे मायासम्बन्धी तीनों ही संग्रह कृष्टियोंकी अनन्त कृष्टियोंके यथाक्रम अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे कृष्टिगुणकारोंका यह अल्पबहुत्व जान लेना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* इससे आगे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रथम कृष्टि अन्तर अनन्तगुणा है ।
४४. यहाँपर भी पहले के समान परस्थान गुणकारके उल्लंघन द्वारा मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टि के अन्तिम अन्तर कृष्टि अन्तरसे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रथम कृष्टि अन्तर अनन्तगुणा है यह उपदिष्ट किया गया जानना चाहिए।
* मानकी भी तीनों संग्रह कृष्टियोंका अन्तर यथाक्रम अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना
चाहिए ।
$ ४५ मानकी भी तीनों संग्रह कृष्टियोंको पृथक्-पृथक् रोककर प्रकृत अल्पबहुत्व ले जाना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* इससे आगे क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रथम कृष्टि अन्तर अनन्तगुणा है ।
६४६. यह सूत्र सुगम है ।
* क्रोधको भी तीनों संग्रह कृष्टियों का अन्तर, यथाक्रम अन्तिम कृष्टि अन्तरके प्राप्त होने तक, अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए ।