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________________ aar से ढोए संक्रमणियमपरूवणा ३१३ * माणस्स तदियादो संगहकिट्टीदो मायाए पढमसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । * मायाए पढमसंगहकिट्टीदो लोभस्स पढमसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसे साहियं । * मायाए विदियादो संगह किट्टीदो लोभस्स पढमाए संगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । * मायाए तदियादो संगह किट्टीदो लोभस्स पढमाए संगहकिट्टीए संकम दि पदेसग्गं विसेसाहियं । $ ७८४. एत्थ सम्वत्थ संतकम्माणुसारेणेव विसेसाहियत्तं जावमिदि बटुव्वं । सेसं सुगमं । * लोभस्स पढमकिट्टीदो लोभस्स चैव विदियसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसगं विसेसाहियं । ६७८५ एत्थ वि संतकम् माणुसारेणेव विसेसाहियत्तं जादमिदि घेत्तव्यं । एत्थ चोदओ भइ - कोहविदिय संगह किट्टिप्पहूडि हेट्ठा णिवदिदासेससंक मदव्यमधापवत्तसंक मेणेव गहिदं; तत्थ पयारंतरासंभवादो । एसो पुण ओकडणासंकमो, तदो पुव्विल्लसकमदब्वादो असंखेज्जगुणेण देण * मानकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि में विशेष अधिक प्रदेशपुंजको संक्रमित करता है । मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रवेशपुंजको संक्रमित करता है । * मायाकी दूसरी संग्रहकृष्टिसे लोभको प्रथम संग्रहकृष्टि में विशेष अधिक प्रवेशपुंजको संक्रमित करता है । * मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रवेशपुंजको संक्रमित करता है । ६ ७८४. यहाँ सर्वत्र सत्कर्मके अनुसार ही विशेष अधिकपना हो जाता है ऐसा जानना चाहिए । शेष कथन सुगम है । * लोभकी प्रथम कृष्टिसे लोभकी ही दूसरी संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशपंजको संक्रमित करता है । $ ७८५. यहाँ पर भी सत्कर्मके अनुसार ही विशेष अधिकपना हो गया है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । शंका- यहाँपर शंकाकार कहता है - क्रोध की दूसरी संग्रहकुष्टिसे लेकर नीचे पतित होनेवाला सम्पूर्ण संक्रम द्रव्य अधःप्रवृत्त संक्रमके क्रमसे ही ग्रहण किया जाता है, क्योंकि वहाँपर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है । परन्तु यह अपकर्षण संक्रम है, असंख्यातगुणा होना चाहिए, क्योंकि अधःप्रवृत्त भागहारसे असंख्यातगुणा होता है । ऐसा उपदेश है ? ४० इसलिए पहिलेके संक्रम द्रव्यसे यह अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार सर्वत्र
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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