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________________ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे कारभागमेत्तो विसेसो एत्थ दट्ठव्वो । संपहि एदस्सेव विसेसाहिय भावस्स फुडीकरण टुमुत्तरसुतावयारो * एसो विसेसो अनंतराणंतरेण संखेज्जदिभागो । ६ ७४९. सुगमं । एवमेदेणायामविसेसेण परिच्छिण्णपमाणाणं सुहुमसांपराइय किट्टीण मंतोमुहुत्तकालमे देणप्पा बहुअविहाणेण सब्वणिव्यत्ती होवि त्ति जाणावणफलो उत्तरसुत्तणिद्देसो* सुहुमसांपराइय किट्टीओ जाओ पढमसमये कदाओ ताओ बहुगाओ । ३०० § ७५०. सुगमं । * विदियसमये अपुव्वाओ कीरंति असंखेज्जगुणहीणाओ । ७५१. सुगमं । * अणंतरवोणिधाए सव्विस्से सुहुमसांपराइय किट्टीकरणद्धाए अपुव्वाओ सुहुमसांपराइय किट्टीओ असंखेज्जगुणहीणाए सढीए कीरति । $ ७५२. सुगममेदं पि सुत्तं । एवमं तो मुहुत्तमेत्तकालमसंखेज्जगुण होणाए सेंढीए अपुण्यापुवाओ सुमसांपराइय किट्टीए णिव्वतेमाणो सुहुमसांपराइयकिट्टीकरणद्धाए पढमसमय पडि पॅडसमयमणं गुणा विसोहीए वडमाणो असंखेज्जगुण मसंखेज्जगुणं पदेसग्गमोकड्डिय'ग तत्थ निसिचदित्ति जाणावणटुमुत्तरसत्तमाह कृष्टिकी अन्तरकृष्टियां ग्यारह ( ११ ) भागप्रमाण अधिक इसमें जाननी चाहिए। अब इसी विशेष अधिकपने का स्पष्टीकरण करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार हुआ है * यह विशेष अनन्तर- अनन्तर विधिसे संख्यातवां भाग है । § ७४९. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार इस आयामविशेष के द्वारा ज्ञात प्रमाणवाली सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंकी अन्तर्मुहूर्त काल तक इस अल्पबहुत्व विधिसे स्वरूप निष्पत्ति होती है यह ज्ञान कराने के फलस्वरूप आगेक सूत्रका निर्देश करते हैं * जो सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टियां प्रथम समय में की गयी हैं वे बहुत होती हैं । ६ ७५०. यह सूत्र सुगम है । * दूसरे समय में जो अपूर्व कृष्टियों की जाती हैं वे असंख्यातगुणी होन होती हैं। ६ ७५१. यह सूत्र सुगम है । * इस प्रकार अनन्तरोपनिधाको अपेक्षा समस्त सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरण कालमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियां असंख्यातगुणहीन श्रेणीरूपसे की जाती हैं । ६ ७५२. यह सूत्र भी सुगम है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल तक असंख्यातगुणहीन श्रेणीरूपसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकी अपूर्व-अपूर्व कृष्टियोंकी रचना करता हुआ सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरण कालके प्रथम समयसे लेकर प्रत्येक समय में अनन्तगुणी विशुद्धिके द्वारा विशुद्धिको प्राप्त होता हुआ असंख्यातगुणे - असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके उसमें सिंचन करता है इस बातका ज्ञान कराने के लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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