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पश्चादानुपूर्वीसे कृष्टिवेदक करनेवाली छठी भाष्यगाथा
कालका
विचार
क्षपक के
किस गति आदि के पूर्वबद्ध कर्म इस होते हैं इसका निर्देश करनेवाली चौथी मूलगाथा
कितने इन्द्रिय सम्बन्धी और कितने त्रस सम्बन्धी भवों द्वारा अर्जित कार्य इस क्षपकके होते हैं इसका निर्देश करने वाली दूसरी भाष्य
गाथा
( २९
१०९
गति, इन्द्रिय और कायकी अपेक्षा प्रकृत विषयका विचार करनेवाली प्रथम भाष्यगाथा
११५
११३
प्रकृत में किस मार्गणा आदिमें बद्ध कर्म इस क्षपक अभजनीय हैं और किस मार्गणा आदिमें बद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं इसका विचार करनेवाली प्रथम भाष्य
गाथा
१२४ स्थिति, अनुभाग और कषायमेंसे किसकी अपेक्षा पूर्व बद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं या नहीं हैं इसका विचार करनेवाली तीसरी
भाष्यगाथा
अन्य मार्गणाओं आदिकी अपेक्षा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके होते हैं इसका निर्देश करनेवाली पांचवीं मूल गाथा
१२६
१२८
१२९
योगों की अपेक्षा प्रकृत विषयका विचार करनेवाली दूसरी भाष्यगाथा ज्ञानोपयोगकी अपेक्षा प्रकृत विषयका विचार करनेवाली तीसरी भाष्यगाथा दर्शनोपयोगकी अपेक्षा प्रकृत विषयका विचार करनेवाली चौथी भाष्यगाथा
१३५
लेश्या, कर्म, काल और लिंग आदिकी अपेक्षा प्रकृत विषयका निर्देश करनेवाली छठी मूलगाथा १३६ लेश्या, साता, असाता और शिल्प कर्म आदिकी अपेक्षा प्रकृत विषयका विचार करने - वाली प्रथम भाष्यगाथा
१३७
१३२
१३३
इस क्षपकके ये पूर्व बद्ध कर्म सब स्थितियों आदिमें नियमसे पाये जाते हैं इसका निर्देश करनेवाली दूसरी भाष्यगाथा भवबद्धकी अपेक्षा प्रकृत करनेवाली सातवीं मूल
एक समय प्रबद्ध और विषयका संकेत
गाथा
अन्तरकरण के बाद
छह आवलियों में बद्ध
१४३
प्रथम भाष्यगाथा
नव बन्धके संक्रमको किस विधिसे करता है इसका विचार करनेवाली दूसरी भाष्य
गाथा
१४६
१४८
१५३
इसी विषयको स्पष्ट करनेवाली तीसरी
भाष्यगाथा
कौन समय प्रबद्ध इस क्षपकके असंक्षुब्ध रहते हैं इसका विचार करनेवाली चौथी भाष्य
१५७
१५८
गाथा
एक और नाना समय प्रबद्ध शेष और भवबद्ध शेष आदि इस क्षपकके पाये जाते हैं इसका संकेत करनेवाली आठवीं मूलगाथा १५९ जिस स्थिति विशेष में और जिन अनुभागों में
गाथा
भवबद्ध शेष और समय बद्ध शेष होते हैं उसका निर्देश करनेवाली प्रथम भाष्य१६२ उत्तर श्रेणिमें उक्त कर्म नियमसे पाये जाते हैं इसका निर्देश करनेवाली दूसरी भाष्यगाथा १६९ असामान्य कर्म सम्बन्धी विचार करनेवाली तीसरी भाष्यगाथा १७३ प्रकृत में यवमध्य कहाँ होता है इसका निर्देश १७८ उत्कृष्ट अन्तर से युक्त अन्तमें जो असामान्य स्थिति प्राप्त होती है उसके आश्रय से विचार करनेवाली चौथी भाष्यगाथा यहाँ जिन चार भाष्य गाथाओंद्वारा क्षपकके आश्रयसे विचार किया है उनको अभव्यों के प्रायोग्य भी विवेचन करना चाहिये इस बातका निर्देश १८९ निर्लेपन स्थानोंकी प्ररूपणा के विषय में दो उपदेशोंका निर्देश एक उपदेश के अनुसार निर्देश
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१९० १९१