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जयधवलासहिदे कसायपाहुडै पदंसणटुं 'कोहस्स पढमसंगहकिट्टि मोत्तूणे ति' वृत्तं ।
* ताओ अपुवाओ किट्टीओ कदमादो पदेसग्गादो णिवत्तेदि । - ६१८. तासिमपुध्वाणं णिवत्तिज्जमाणोणं किट्टीणं कदमादो पदेसग्गादो णिवत्ती होदि, किं बज्झमाणियादो आहो संकामिज्जमाणयादो, उदाहो तदुभयादो ति पुच्छा एदेण कदा होइ । संपहि एदिस्से पुच्छाए णिरारेगीकरण?मुत्तरसुत्तारंभो
* बज्झमाणयादो च संकामिज्जमाणयादो च पदेसग्गादो णिव्वत्तेदि ।
६६१९. चउण्हं पढमसंगहकिट्टीणं बंधसंभवादो । तत्थ बज्झमाणएण पदेसग्मेण अपुवाओ किट्टीओ णिवत्तेदि । पुणो कोहपढमसंगहकिट्टि मोत्तण सेसाणमेक्कारसहं संगहकिट्टोणं संकामिज्जमाणयादो च पदेसग्गादो अपुवाओ किट्टीओ णिव्वत्तेवि त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो । एदस्स भावत्थो–कोहपढमसंगहकिट्टीए बज्झमाणपदेसग्गादो चेव अपुवाओ किट्टीओ णिवत्तेदि, तत्थ पयारंतरासंभवादो। माण-माया-लोभाणं तिसु पढमसंगहकिट्टीसु बज्झमाणयादो संकामिज्जमाणयादो च पदेसग्गादो अपुवकिट्टीओ णिवत्तेदि, उहयहा वि तत्थ तप्पवुत्तीए विरोहाभावादो। सेससंगहकिट्टीसु संकामिज्जमाणयादो चेव पदेसग्गादो अपुव्वकिट्टीणं णिवत्ती, तत्थ बज्झमाणपदेसग्गासंभवादो ति। एत्थ 'संकामिज्जमाणयादो' ति वुत्ते ओकडुणासंकमदव्वस्स सव्वत्य गहणं कायव्वं । एवमेदेण दुविहेण पदेसग्गेण णिवत्तिज्जमाणोसु अपुवकिट्टीसु कि बज्झमाणप्रकार इस विशेषके दिखलानेके लिए चूणिसूत्रमें 'कोहस्स पढमसंगहकिट्टि मोत्तण' क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिको छोड़कर यह वचन कहा है।
* उन अपूर्व कृष्टियोंको किस प्रदेशके अग्रभागसे निष्पन्न करता है। . ६ ६१८. निष्पन्न होनेवाली उन अपूर्व कृष्टियोंको किस प्रदेशके अग्रभागसे निष्पन्न करता है ? क्या बध्यमान कृष्टिसे या संक्रम्यमाण कृष्टिसे, या दोनोंसे; इस प्रकार यह पृच्छा इस सूत्र द्वारा की गयी है । अब इस पृच्छाका समाधान करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
* बध्यमान प्रदेशके अग्रभागसे और संक्रम्यमाण प्रदेशके अग्रभागसे उन अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है।
६ ६१९. क्योंकि प्रथम संग्रह कृष्टियोंका बन्ध सम्भव है। वहां बध्यमान प्रदेशाग्रसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है। पुनः क्रोधसंज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिको छोड़कर शेष ग्यारह संग्रह कृष्टियोंके संक्रम्यमाण प्रदेशके अग्रभागसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है यह यहांपर इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । इसका भावार्थ-क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि के बध्यमान प्रदेशके अग्रभागसे ही अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है, क्योंकि वहाँपर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है। तथा मान, माया और लोभसंज्वलनकी तीन प्रथम संग्रह कृष्टियोंमें बध्यमान और संक्रम्यमाण प्रदेशके अग्रभागसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है, क्योंकि उनमें दोनों प्रकारसे ही उसकी प्रवृत्ति होने में विरोधका अभाव है । शेष संग्रह कृष्टियों में संक्रम्यमाण प्रदेशके अग्रभागसे ही अपूर्व कृष्टियोंकी निष्पत्ति होती है, क्योंकि उनमें मध्यमान प्रदेशाग्रका होना असम्भव है। यहांपर 'संकामिज्जमाणयादो' ऐसा कहनेपर यहां सर्वत्र अपकर्षण संक्रम द्रव्यका ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार इस दो प्रकारके प्रदेशपुंजमेंसे निष्पन्न होनेवाली अपूर्व कृष्टियोंमें क्या बध्यमान प्रदेश