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________________ aaraढीए अण्णा परूवणा * सव्वत्थोवमणुसमयणिल्लेव णकंडय मुक्कस्सयं । $ ५७२. एत्थाणुसमय णिल्लवणकंडयमिदि भणिदे समयं पडि भवबद्धाणं समयपबद्धाणं च पिल्लेवणकालो गहेयव्वो । तस्साणुक्कस्स वियप्पपडिसेहट्ठमुक्कस्स विसेसणं कदं; तेण सव्वुक्कस्सयमणुसमय णिल्लेवणकंडयमावलियाए असंखेज्जदिभागपमाणं होण सव्वत्योवमिदि सुतत्थो । २२७ * जे एगसमएण णिल्लेविज्जंति भवबद्धा ते असंखेज्जगुणा । ६५७३. कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपमाणत्तादो। णचेदमसिद्धं, एक्कम्मि ठिदिविसेसे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता भवबद्धा होहूण णिल्लेविज्जंति त्ति पुण्वमेव परुविदत्तादो । * समयपवद्धा एगसमयेण णिल्लेविज्जंति असंखेज्जगुणा । ६५७४. देवि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता चेव होंति, किंतु एगम्मि भवबद्धे जिल्लेविज्जमाणे असंखेज्जा समयपबद्धा पिल्ले विज्जमाणा लब्भंति, एगभवबद्धअब्भंत रे जहणदो वि अंतोमुहुत्तमेत्ताणं समयपबद्धाणं संभवोवलंभादो । तदो सिद्धमेदेसि तत्तो असंखेज्ज - गुणत्तं । गुणगारनामेत्थ अंतोमुहुत्तमेत्तमिदि घेत्तव्वं । * समयपबद्धसेसएण विरहिदाओ णिरंतराओ द्विदीओ असंखेज्जगुणाओ । * उत्कृष्ट अनुसमय निर्लेपनकाण्डक सबसे अल्प है । $ ५७२. यहाँपर अनुसमय निर्लेपनकाण्डक ऐसा कहनेपर उससे प्रतिसमयके भवबद्ध और समयबद्धों का निर्लेपनकाल ग्रहण करना चाहिए। उसके अनुत्कृष्ट भेदका निषेध करनेके लिए उत्कृष्ट विशेषण दिया है । इस कारण सबसे उत्कृष्ट अनुसमय निर्लेपनकाण्डक मावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर सबसे अलग है यह इस सूत्रका अर्थ है । * जो भवबद्ध एक समय द्वारा निर्लेपित किये जाते हैं वे असंख्यातगुणे हैं । $ ५७३. क्योंकि ये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । और यह कथन असिद्ध नहीं है, क्योंकि एक स्थितिविशेष में पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भवबद्ध होकर निर्लेपित किये जाते हैं यह पूर्व ही कह आये हैं * जो समयप्रबद्ध एक समय द्वारा निर्लेपित किये जाते हैं वे असंख्यातगुणे हैं । $ ५७४. ये भी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होते हैं, क्योंकि एक भवबद्ध के निर्लेप्यमान होने में असंख्यात समयप्रबद्ध निर्लेप्यमान प्राप्त होते हैं, क्योंकि एक भवबद्धके भीतर जघन्यसे भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण समयप्रबद्ध उपलब्ध होते हैं । इसलिए ये उनसे असंख्यातगुणे हैं यह सिद्ध हुआ । यहाँपर गुणकारका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । * समयबद्ध शेषसे रहित निरन्तर स्थितियाँ असंख्यातगुणी हैं । १. ताम्रपत्रप्रती प्रायोऽत्र खंडयमिदि इति पाठः ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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