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________________ - लवगसेढोए तदियमूलगाहाए तदियत्थे छट्टमासगाहा १११ २९९. एवमेवेण गाहासत्तैण सूचिदप्पाबहुअस्स फुडीकरणट्ठमुवरिमं विहासागंथमाह* विहासा। ६३००. सुगम। * पच्छिमकिट्टीमंतोमुहुत्तं वेदयदि, तिस्से वेदगकालो थोवो । ३०१. किं कारणं ? सहुमसांपराइयद्धापमाणत्तादो। एसो च अंतरकरणद्वादो संखेज्जगुणो त्ति घेत्तव्यो, संखेज्जढिविबंधसहस्सगब्भत्तादो। * एक्कारसमीए किट्टीए वेदगकाला विसेसाहिओ। ६३०२. एसो लोभविवियबावरसांपराइयकिट्टीए वेवगकालो, तेण विसेसाहिमो जावो। केत्तियमेत्तो विसेसो ? संखेज्जावलियमतो। कुदो एवमवगम्मदे ? 'संखेज्जविभागेण दु सेसिगाणं कमेणहिया ति गाहासुत्तावयवादो। एवमुवरिमपदेसु वि सम्वत्थ विसेसपमाणमेदं गायव्वं । * दसमीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ। ६३०३. एसो लोभपढमसंगहकिट्टीवेदगघालो 'दटुग्यो ? सेसं सुगमं । ६ २९९. इस प्रकार इस गाथासूत्र द्वारा सूचित हुए अल्पबहुत्वका स्पष्टीकरण करनेके लिए आगेके विभाषा ग्रन्थको कहते हैं * अब इस भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ६३००. यह सूत्र सुगम है। के अन्तिम कृष्टिका अन्तर्मुहूर्त काल तक वेवन करता है। उसका वेदनकाल अल्प है। ६३०१. शंक-इसका क्या कारण है ? समाधान-क्योंकि वह सूक्ष्मसाम्परायके गुणस्थानके काल-प्रमाण है और यह काल अन्तरकरणके कालसे संख्यातगुणा है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि इसमें संख्यात हजार स्थितिबन्ध अपसरणकाल गर्भित हैं। * ग्यारहवीं कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। - ६३०२. यह लोभसंज्वलनकी दूसरी बादरसम्पराय कृष्टिका वेदकका है, इसलिये विशेष अधिक हो गया है! शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-संख्यात आवलिप्रमाण विशेष है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-'संखेज्जदिभागेण दु कमेणहिया' इस गाथासूत्र वचनसे जाना जाता हैं। इस प्रकार उपरिम पदोंमें भी यह विशेषका प्रमाण जानना चाहिए। * दसवीं कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। 5३०३. यह लोभसंज्वलनको प्रथमसंग्रह कृष्टिका वेदककाल जानना चाहिए। शेष कथन सुगम है। १. आ. प्रती श्वेयन्वो इति पा.।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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