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________________ संकममुदीरणा च कदिभागो एदस्स गाहावयवस्स परूवणा २९ गुणहाणिअण्णोण्णसंवग्गमेत्तो मागहारो उक्कसुदयदन्वागमणटुं पुण दिवड्डगुणहाणिमेत्तुक्कस्ससमयपबद्धाणमोकड्डुक्कडणभागहारादो असंखेज्जगणो पलिदो० असंखे०भागो भागहारो, तदो णेदेसिमसंखेज्जगुणहीणाहियमावो परिप्फुडमवगम्मदि ति । किं कारणं ? उदयदव्वागमणमोकड्डुक्कडणभागहारस्स पवेसिदपलिदो० असंखे०भागमेत्तगुणयारमाहप्पमस्सियूण पुग्विन्लादो एदस्स असंखेज्जगुणत्तसिद्धीदो । * जहण्णयं उवसामिज्जवि असंखेज्जगुणं । 5 कुदो ? परत्थाणे संकामिज्जमाणदव्वादो सत्थाणे उवसामिज्जमाणदव्वस्स सव्वत्थासंखेज्जगुणभावभुवगमादो। णाभुवगमो णिणिबंधणो, एदं चेव सुत्तं णिबंधणीकरिय पयत्तादो।। * जहएणयं संतकम्ममसंखेज्जगुणं । ७३. कुदो ? पढमसमयणवुसयवेदोवसामगेण उवसामिज्जमाणपदेसग्गस्स जहण्णसंतकम्मरसासंखेज्जदिभागपमाणत्तादो। शंका-जघन्य संक्रमद्रव्यके लानेके लिए डेढ गुणहानिप्रमाण समयप्रबद्धोंका अपकर्षणउत्कर्षणभागहार, दो छयासठ सागरोपम, नानागुणहानियोंको अन्योन्याम्यस्तराशि और गुणसंक्रमभागहारके परस्पर संवर्ग करने पर जो राशि उत्पन्न हो वह भागहार है और उत्कृष्ट उदय द्रव्यके लानेके लिए तो डेढ़ गुणहानिप्रमाण उत्कृष्ट समयप्रबद्धोंका उत्कर्षण-अपकर्षणसे असंख्यातगुणा पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग भागहार है, इसलिए नपूंसकवेदके उत्कृष्ट उदय द्रव्य और जघन्य संक्रम द्रव्य इनमें असंख्यातगुणा हीनपना है या अधिकपना है स्पष्टरूपसे ज्ञात नहीं होता? ___समाधान-यहाँ ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उदयद्रव्यके लानेके लिये जो उत्कर्षण-अपकर्षण भागहार है उसमें प्रवेश कराये गये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकारके माहात्म्यका आश्रय लेनेसे पहलेकी अपेक्षा यह असंख्यातगुणा है यह सिद्ध होता है। विशेषार्थ-तात्पर्य यह है कि जिस उपरितन द्रव्यमें उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारका भाग देनेसे लब्ध आवे उसे उदयमें निक्षिप्त करता है। उस भागहारका पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण गुणकारसे गुणा करनेपर जो लब्ध आवे उससे उपरितन द्रव्यको भाजित करनेपर लब्ध द्रव्यका संक्रम होता है, इसलिए सिद्ध हुआ कि नपुंसकवेदके उत्कृष्ट उदय द्रव्यसे जघन्य संक्रम द्रव्य असंख्यातगुणा है। * उपशम कराया गया जघन्य द्रव्य असंख्यातगुणा है। $ ७२. क्योंकि परस्थानमें संक्रम कराये गये द्रव्यसे स्वस्थानमें उपशम कराया गया द्रव्य सर्वत्र असंख्यातगुणा उपलब्ध होता है। और यह स्वीकार करना बिना कारणके नहीं है, क्योंकि यहाँ यही सूत्र कारण होकर प्रवृत्त हआ है। तात्पर्य यह है कि जघन्य संक्रम द्रव्यसे जघन्य उपशम कराया गया द्रव्य असंख्यातगुणा है इसकी पुष्टि इसी सूत्रसे होती है। * जघन्य सत्कर्म असंख्यातगुणा है। ६७३. क्योंकि प्रथम समयमें नपुंसकवेदके उपशमानेसे उपशमाया जानेवाला जो प्रदेश
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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