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संकममुदीरणा च कदिभागो एदस्स गाहावयवस्स परूवणा
पमाणा होण थोवा होदि । किमेसा जहण्णा आहो उक्कस्सा चि पुच्छिदे अणुक्कस्सअजहण्णा त्ति भणिदं । कुदो ? खविदगुणिदकम्मंसिएस दव्वविसेसमणपेक्खिय परिणामपरतंतभावेण पयट्टमाणाये एदिस्से तिकालगोयरासेसाणियट्टीसु णिरुद्वेगेग समयम्मि परिणामेसु जहण्णुक्कस्तभावेहिं विणा एयसरूवेण पवृत्तिदंसणादो ।
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* जहण्णओ उदओ असंखेज्जगुणो ।
६९. इमो वि तम्मि चेव समए गहिदो, किंतु उदीरणा णाम एगसमइया भवदि । उदओ पुण अंतोनुडुत्तसंगलिदगु णसेडिगो वुच्छसरूवो तेण असंखेज्जगुणो जादो । एसो वुण खविदकम्मंसियम्मि जहण्णो घेत्तन्वो, तदण्णत्थ पयडिगोच्छाए सह जहण्णगणसेढिगोवुच्छाणुवलंभादो ।
* उक्कस्सओ उदओ विसेसाहिओ ।
$ ७०. किं कारणं ? गुणिदकम्मंसियम्मि तदवलंबणादो । तं जहा - खविदकम्मंसिओ गुणिदकम्मंअिओ च अणियद्विपरिणाममस्सियूण अप्पप्पणो दव्वं सरिस
शंका- क्या यह प्रदेश उदीरणा जघन्य होती है या उत्कृष्ट ?
समाधान - ऐसी पृच्छा होने पर कहते हैं यह अनुत्कृष्ट- अजघन्य होती है ऐसा सूत्रमें कहा गया है, क्योंकि क्षपित कर्माशिक और गुणित कर्माशिकके द्रव्य विशेषकी अपेक्षा न कर परिणामोंके अधीन होकर प्रवृत्त होनेवाली इसकी, त्रिकालगोचर समस्त अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी परिणामों से विवक्षित एक समयमें जघन्य उत्कृष्ट भावके बिना, एकरूपसे प्रवृत्ति देखी जाती है ।
विशेषार्थ - जो गुणित कर्माशिक जीव या क्षपिन कर्माशिक जीव अनिवृत्तिकरण में प्रवेश करते हैं उनके नपुंसक वेदको प्रदेश उदीरणा यहाँ विवक्षित नहीं है । अतः उनसे भिन्न जीवोंके अनिवृत्तिकरणमें प्रवेश करनेपर वहाँके परिणामोंके अनुसार जो नपुंसकवेदको अनुत्कृष्ट-अजघन्य उदीरणा होती है वह सबसे जधन्यरूपसे यहाँ विवक्षित है। तीनों कालोंसम्बन्धी अनिवृत्तिकरणके परिणामों से विवक्षित एक समयको लक्ष्य कर यह अनुत्कृष्ट- अजघन्य उदीरणा ली गई है ऐसा यहाँ समझना चाहिये । वह भी अन्तरकरणक्रिया सम्पन्न करनेके अनन्तर दूसरे समयकी यह प्रदेश उदीरणा है इतना विशेष जानना चाहिये ।
* जघन्य उदय असंख्यातगुणा है ।
६९. यह भी उसी समयका लेना चाहिये । किन्तु उदीरणा एक समयवाली होती है, परन्तु उदय अन्तर्मुहूर्तं गलानेवाली गुणश्रेणिगोपुच्छास्वरूप होता है, इसलिए उदीरणासे उदय असंख्यातगुणा हो जाता है । परन्तु यह क्षपित कर्माशिकका जघन्य लेना चाहिये, क्योंकि उसके सिवाय अन्यत्र प्रकृतिगोपुच्छाके साथ जघन्य गुणश्रेणिगोपुच्छा नहीं उपलब्ध होती ।
* उत्कृष्ट उदय विशेष अधिक है ।
६ ७०. क्योंकि गुणितकर्माशिकके उसका अवलम्बन लिया गया है । वह जैसे - क्षपित शिक और गुणितकर्माशिक दोनों ही अनिवृत्तिकरण परिणामका आलम्बन लेकर अपने-अपने