SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पुव्वफद्दसु णिवदति । एवं चैव सेसासेसखंडाणि वि पुव्वापुव्वफद्दयसु विहंजियूण दादव्वाणि । एवं दिण्णे पुव्वफद्द्यादिवग्गणाए लद्धवियलखंडाणि सव्वाणि घेत्तूणेयसयलखंडपमाणं णत्थि, किंचूणेगसयल खंड मेत्तस्सेव तस्स समुवलंभादो । ३५२ $ ४८६. संपहि केत्तियमेतदव्वेण एयसयलखंडपमाणं पावदिति पुच्छिदे ओकड्डुक्कड्डुणभागहारमेत्तवियलखंडाणि जइ अस्थि तो एयसयलखंडपमाणं पावदि । णच एत्तियमेत्तदव्वमत्थि, हेट्ठिमभागहारादो उवरिम खंडसलागगुणगारस्स ओकड्डुक्कड्डणभागहारमेत्तरूवेहिं परिहीणत्तदंसणादो । तम्हा किंचूणेग खंड मेत्तमेव पुव्वफद्दयादिवग्गणाए लद्धदव्वमिदि सिद्धं । $ ४८७. संपहि अपुत्रफद्दहिं केत्तियमेत्तदव्वं लद्धमिदि मणिदे रूवूणोकड्डुक्कड्डणभागहारमेत्तसयलखंडाणि पुणो किंचूणेयखंडपमाणं च लद्धं होदि । तदो अपुव्वफद्दय चरिमवग्गणा णिसित्तपदेस दो पुव्वफद्दयादिवग्गणाए णिसित्त पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं । केत्तिओ एत्थ गुणगारो ति भणिदे ओकड्डुक्कडणभागहारो सादिरेओ भवदि । एदेण कारणेण पढमस्स पुव्वफद्दयस्सादिवग्गणाए असंखेज्जगुणहीणं पदेसग्गं णिक्खिविपूण तदो विदियाए पुव्वफद्दयवग्गणाए विसेसहीणं देदि अनंतभागेण, सेसासु वि सव्वासु पुव्वफद्दयवग्गणासु अणंतरोवणिधाए विसेसहीणं चैव विसेसहीणं । पुव्वफद्दयाणं जहण्णफद्दयमादिं काढूण जहण्णाइच्छावणमेत्त फट्ट्याणि होते हैं । और इसी प्रकार शेष समस्त खण्ड भी पूर्व और अपूर्व स्पर्धकों में विभक्त करके दे देने चाहिये । इस प्रकार देनेपर पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणामें प्राप्त हुए सभी विकल खण्डों को ग्रहण कर एक सकल खण्डका प्रमाण नहीं होता, क्योंकि कुछ कम एक सकल खण्डप्रमाण हो उसका उपलब्ध होता है । $ ४८६. अब कियत्प्रमाण द्रव्यसे एक सकल खण्डका प्रमाण प्राप्त होता है ऐसा पूछने पर अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारप्रमाण विकल खण्ड यदि होते हैं तो एक सकल खण्डका प्रमाण प्राप्त होता है । परन्तु इतना द्रव्य नहीं है, क्योंकि अधस्तन भागहारसे उपरिम खण्ड शलाकाओं का गुणकार अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारप्रमाण रूपोंसे परिहीन देखा जाता है । इसलिए पूर्व स्पर्धक की आदि वर्गणाके कुछ कम एक खण्डप्रमाण ही लब्ध द्रव्य होता है यह सिद्ध हुआ । $ ४८७. अब अपूर्व स्पर्धकोंसे कियत् प्रमाण द्रव्य लब्ध होता है ऐसा कहनेपर एक कम अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारप्रमाण सकल खण्ड और कुछ कम एक खण्डप्रमाण द्रव्य लब्ध होता है इसलिए अपूर्व स्पर्धककी अन्तिम वर्गणामें निक्षिप्त हुए प्रदेशपु जसे पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणामें निक्षिप्त हुआ प्रदेशपुज असंख्यातगुणा होन होता है । यहाँ गुणकारका कितना प्रमाण है? कहते हैं कि वह साधिक अपकर्षण- उत्कर्षणभागहाप्रमाण है । इस कारणसे प्रथम पूर्व स्पर्धकको आदि वर्ग असंख्यातगुणा होन प्रदेशपुंज निक्षिप्त करके उससे पूर्व स्पर्धककी दूसरी वर्गणा में अनन्तवें भागप्रमाण विशेष हीन देता है। आगे पूर्व स्पर्धककी शेष सब वर्गणाओंमें अनन्तरोपनिधासे विशेष हीन- विशेष हीन ही देता है । शंका- पूर्व स्पर्धनों के जघन्य स्पर्धक से लेकर जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण स्पर्धकोंको
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy