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________________ भाग-14 खवगसेढोए अपुव्वफद्दयपरूवणा ३३७ भागुत्तरत्तं परूविय एत्तो तदियादिफद्दयाणमादिवग्गणाओ अणंतरहेट्ठिमफद्दयादिवग्गगाहिंतो कदिभागुत्तरा होति त्ति एदस्स णिद्धारणट्टमुत्तरसुत्तमाह * एवमणंतराणंतरेण गंतूण दुचरिमस्स फद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदादो चरिमस्स अपुव्वफदयस्स आदिवग्गणा विसेसांहिया अर्णतभागंण ।। ४६०. एत्थ ताव एवमणंतराणंतरेण गंतूणे त्ति एवं सुत्तावयवमस्सियण सुत्तसूचिदं किंचि अत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा-विदियफद्दयादिवग्गणादो तदियफद्दयादिवग्गणा किंचूणदुभागुत्तरा मवदि, एगेगपरमाणुधरिदाविभागपडिच्छेदसमूहस्स दुभागुत्तरत्ते संते तदादिवग्गेणायायादो एत्थतणादिवग्गणायमस्स एगफद्दयवग्गणसलागमेत्तवग्गणविसेसेहिं परिहीणत्तदंसणादो। एत्थ तदियफद्दयादिवग्गणायाम तिण्णि फालिओ कादण तत्थेगफालीदो दुगणिदफद्दयवग्गणसलागमेत्ते विसेसे घेत्तण सेसदोफालिसीसेसु संधिय किंचूणदुभागभहियत्तं दरिसेयव्वं ।। ६४६१. संपहि तदियफद्दयादिवग्गणादो चउत्थफद्दयादिवग्गणा किंचूणतिभागुत्तरा होइ । एवं पंचमादिफद्दयादिवग्गणाओ वि किंचूणचउब्भागुत्तरादिकमेण जहाकम णेदव्वाओ जाव जहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तफहयाणं चरिमफद्दयादिवग्गणा इस प्रकार इस स्पर्धकके अविभागप्रतिच्छेद अतन्तबहुभाग अधिक होते हैं इस बातकी प्ररूपणा करके आगे तृतीय आदि स्पर्धकोंकी आदि-वर्गणाएँ अनन्तर अधस्तन आदि-वर्गणाओंसे कितने भाग अधिक होती हैं इस प्रकार इस बातका निर्धारण करनेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं___ * इस प्रकार अनन्तर तदनन्तररूपसे आगे जाकर द्विचरम स्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे अन्तिम अपूर्व स्पर्धकको आदि वर्गणा अनन्तवें भागप्रमाण विशेष अधिक होती है । ४६०. सर्वप्रथम यहाँपर इस प्रकार अनन्तर अनन्तररूपसे आगे जाकर इस सूत्रके अवयवके आश्रयसे सूत्र द्वारा सूचित होनेवाले किंचिन्मात्र अर्थकी प्ररूपणा करेंगे। वह जैसे-दूसरे स्पर्धककी आदि-वर्गणासे तीसरे स्पर्धककी आदि-वर्गणा कुछ कम दो भाग अधिक होती है, क्योंकि एक-एक परमाणुमें प्राप्त अविभागप्रतिच्छेद समूहके दो भाग अधिक होनेपर उस स्पर्धककी आदि-वणाके आयामसे यहाँ सम्बन्धी आदि-वर्गणाका आयाम एक स्पर्धककी जितनी वर्गणाशलाकाएं हैं उतने वर्गणाविशेषोंसे हीन देखा जाता है। यहाँ तीसरे स्पर्धककी आदि-वर्गणाके आयामकी तीन फालियाँ करके यहाँ एक फालिसे दुगुणे स्पर्धक वर्गणाशलाकाप्रमाण विशेषोंको ग्रहण कर शेष दो फालियोंके अग्रभागमें मिला देनेपर कुछ कम दो भाग अधिक दिखलाना चाहिये। $ ४६१. अब तीसरे स्पर्धककी आदिवर्गणासे चौथे स्पर्धककी आदिवर्गणा कुछ कम तीन भाग अधिक होती है। इसी प्रकार पञ्चम आदि स्पर्घकोंकी आदिवर्गणाएं भी कुछ कम चार
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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