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________________ ३३१ पढमसमए णिवत्तिदअपुव्वफद्दयपरूवणा अणवगए तत्तो हेट्ठा समुप्पज्जमाणाणं अपुव्वफद्दयाणं जाणावणोवायामावादो। ___ * सव्वस्स अक्खवगस्स सव्वकम्माणं देसघादिफद्दयाणमादिवग्गणा तुल्ला । सव्वघादीणं पि मोत्तण मिच्छत्तं सेसाणं कम्माणं सव्वघादीणमादिवग्गणा तुल्ला । एदाणि पुवफदयाणि णाम । ___ ४५१. एदेण सुत्तेण सव्वेसिं कम्माणं पुन्वफद्दयाणि एदेण सरूवेणावट्ठिदाणि त्ति जाणाविदं । तं जहा-कम्माणि दुविहाणि-देसघादीणि सव्वघादीणि च। तत्थ देवघादीणं सम्बेसि पि देसघादिफद्दयाणमादिवग्गणा सरिसी चेव होदि, लदासमाणजहण्णफद्दयप्पहुडि तेसिं सव्वेसि पि अणुभागविण्णासदसणादो। सव्वघादीणं पि मिच्छत्तवज्जाणं कम्माणमादिवग्गणा तुल्ला चेव होदि, दारुअसमाणाणंतिमभागे देसधादिफद्दएसु णिट्ठिदेसु तदणंतरसव्वघादिजहण्णफद्दयप्पहुडि तेसिं सव्वेसि पि अणुभागविण्णासस्सावट्ठाणदंसणादो। मिच्छत्तस्स पुण आदिवग्गणा सेससव्वघादीणमादिवग्गणाए सरिसी ण होदि । किं कारणमिदि चे १ वुच्चदेसम्मत्तस्स उक्कस्सदेसघादिफद्दयं जम्मि समत्तं तत्तो उवरिमाणंतरसव्वघादिजहण्णफद्दयप्पहुडि सम्मामिच्छत्तस्स अणुभागविण्णासो पारभदि । तदो सम्मामिच्छत्तस्स पढमफद्दयआदिवग्गणा सेसाणं सव्वधादीणमादिवग्गणाए सरिसी भवदि । एवं होदूण अवस्थान क्रमका ज्ञान न होनेपर उनसे नीचे उत्पन्न होनेवाले अपूर्व स्पर्धकोंको जाननेका अन्य कोई उपाय नहीं है। * सभी अक्षपकोंके सभी कर्मोंसम्बन्धी देशघाति स्पर्धकोंकी आदि वर्गणा तुल्य होती है। सर्वघातियोंमें भी मिथ्यात्वको छोड़कर शेष सर्वघाति कर्मोंकी आदि बर्गणा तुल्य होती है । ये पूर्व स्पर्धक हैं । $४५१. इस सूत्र द्वारा सभी कर्मोंके पूर्व स्पर्धक इस स्वरूपसे अवस्थित हैं इस बातका ज्ञान कराया गया है। वह जैसे-कर्म दो प्रकारके हैं-देशघाति और सर्वघाति । उनमेंसे सभी देशघाति कर्मों में भी देशघाति स्पर्धकोंकी आदि वर्गणा सदृश ही होती है, क्योंकि लता समान जघन्य स्पर्धकसे लेकर उन सभीका अनुभागविन्यास देखा जाता है। तथा मिथ्यात्वको छोड़कर सर्वघाति कर्मोंकी भी आदिवर्गणा सदृश ही होती है, क्योंकि दारुसमान अनन्तवें भागमें देशघातिस्पर्धकोंके समाप्त होनेपर उसके बाद सर्वघाति जघन्य स्पर्धकसे लेकर उन सभीके अनुभागविन्यासका अवस्थान देखा जाता है। परन्तु मिथ्यात्व कर्मकी आदिवर्गणा शेष सर्वघाति कर्मोकी आदिवर्गणाके सदृश नहीं होती। शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान-कहते हैं-सम्यक्त्वका उत्कृष्ट देशघातिस्पर्धक जहाँ समाप्त होता है उससे ऊपर अगले सर्वघाति जघन्य स्पर्धकसे लेकर सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुभागरचना प्रारम्भ होती है, इसलिए सम्यग्मिथ्यात्वकी पहली आदिवर्गणा शेष सर्वघाति कर्मोंकी आदिवर्गणाके सदृश होती
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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